3 अगस्त 2013

१६. खिल जाती चंपा

रोज सुबह,
खिल जाती चंपा।

पुण्य धरा पर होती पोषित,
खूब फैलती और फूलती।
हरयाली साड़ी धारण कर,
खड़ी खड़ी इठलाती हँसती।

खिले खिले सुन्दर फूलों की,
जग को भेंट
चढ़ाती चंपा।

हरी भरी चंपा डाली पर,
श्वेत पुष्प जँचते है खूब।
देखो जहाँ खड़ी है चंपा,
बिछी हुई मखमल सी दूब।

सुन्दर कोमल भावों में तब,
नए अर्थ ले
आती चंपा।

रजत पुष्प में स्वर्णिम आभा,
चंपा ने सूरज से पाई।
चंद्रदेव ने भी जी भरकर,
स्वच्छ चाँदनी नित बिखराई।

इक सुन्दर देवी सी लगती,
पावनता मन
भाती चंपा।

-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी, हिमाचल प्रदेश

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