मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
हैं अधूरे ही पड़े तेरे सपन!
द्वार पर तेरे जले कितने दिए,
लाल थे तेरे, जिये तेरे लिए,
बुझ गये दे भी न पाये हम कफ़न!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
नीर भोजन चीर तेरे भोगते,
गर्भ में तेरे खजाने खोजते,
कर चले हम स्वार्थ में ममता दफ़न!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
हम पले जिस छत्र से आँचल तले,
आज उसमे छिद्र कितने हो चले,
देख कर भी मूँद लेते हम नयन!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
एक माटी का पतन-उत्थान क्या,
विश्व में उसकी भला पहचान क्या,
अस्मिता जिसकी कुचालों के रहन!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
घूँट पी अपमान का जीना वृथा,
आन पर मरना भला है अन्यथा,
हो सृजन संकल्प या नीरव हवन!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
-ओम नीरव
लखनऊ
हैं अधूरे ही पड़े तेरे सपन!
द्वार पर तेरे जले कितने दिए,
लाल थे तेरे, जिये तेरे लिए,
बुझ गये दे भी न पाये हम कफ़न!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
नीर भोजन चीर तेरे भोगते,
गर्भ में तेरे खजाने खोजते,
कर चले हम स्वार्थ में ममता दफ़न!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
हम पले जिस छत्र से आँचल तले,
आज उसमे छिद्र कितने हो चले,
देख कर भी मूँद लेते हम नयन!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
एक माटी का पतन-उत्थान क्या,
विश्व में उसकी भला पहचान क्या,
अस्मिता जिसकी कुचालों के रहन!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
घूँट पी अपमान का जीना वृथा,
आन पर मरना भला है अन्यथा,
हो सृजन संकल्प या नीरव हवन!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!
-ओम नीरव
लखनऊ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज बुधवार (14-08-2013) को 'आज़ादी की कहानी' : चर्चा मंच १३३७....में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
कितनी गहरायी से इस व्यथा को व्यक्त किया आपने ....बहुत ही सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंएक माटी का पतन-उत्थान क्या,
जवाब देंहटाएंविश्व में उसकी भला पहचान क्या,
अस्मिता जिसकी कुचालों के रहन!.......
........... सुन्दर रचना
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंघूँट पी अपमान का जीना वृथा,
जवाब देंहटाएंआन पर मरना भला है अन्यथा,
हो सृजन संकल्प या नीरव हवन!
मातृभू कैसे करें तुझको नमन!...
गहरी भावपूर्ण प्रवाहमय उत्कृष्ट रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई
सुंदर नवगीत के लिए ओम नीरव जी को बधाई
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