14 दिसंबर 2013

४. नववर्ष पर

औपचारिक शब्द कुछ
शुभकामना के
एक दूजे को कहें
नववर्ष पर फिर

हो रहे हैं जिस तरह से
मूल्य खंडित
एक लघु सन्देश तक
हैं भावनाएँ
अब ठिठुरने लग रहे
सम्बन्ध अपने
आइये मिलकर सभी
ऊष्मा बचाएँ

वर्ष आये हैं, गए हैं
और होंगे
एक दिन विश्वास भी
उत्कर्ष पर फिर

आगमन नववर्ष को यदि
आत्म-चिंतन पर्व
माने चेतना की
योजना का
फिर नया सपना
सजाएं आज मिलकर
शांति की ,सौहार्द की
अवधारणा का

सीख ले पिछले बरस के
आत्मिक असफल क्षणों से
बढ़ चलें, बढ़ते चलें
संघर्ष पर फिर.

-जगदीश पंकज
(गाजियाबाद)

5 टिप्‍पणियां:

  1. सीख ले पिछले बरस के
    आत्मिक असफल क्षणों से
    बढ़ चलें, बढ़ते चलें
    संघर्ष पर फिर.
    सत्य कथन....आत्मविश्लेषण करके ही आगे कदम बढ़ाना सुखकर होता है। सुंदर नवगीत के लिए हार्दिक बधाई आपको

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  2. इस सुन्दर नवगीत के लिए जगदीश पंकज जी को हार्दिक बधाई।

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  3. इस सुन्दर नवगीत के लिए जगदीश पंकज जी को हार्दिक बधाई।

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  4. जगदीश पंकज जी की इस प्रस्तुति से गुजरना किसी पाठक का अपने आप से होता हुआ संवाद सदृश है. औ यही इसकी सार्थकता है.

    नवगीत की प्रत्येक पंक्ति नववर्ष मनाने के नाम पर प्रचलित हो गयी रूढियों को नकारती लगी है. बल्कि एक तरह से उनका उपहास करती हुई-सी आगे बढ़ने को प्रेरित करती है.
    इस नवगीत के लिए जगदीश पंकजजी को हृदय से बधाई.. .

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  5. सुंदर नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई

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