अभिनन्दन नववर्ष तुम्हारे
नूतन सूर्योदय का।
जो बीत चुका पीछे छूटा
अब आगे संभल संभल चलना है
पा न सके जो गत वर्षों में
उसकी खातिर श्रम करना है
आओ मिल अभिवादन कर लें
नव अरुणोदय का
समय बहुत तेजी से आगे
कदम धर रहा
जनसेवा का भाव
नित्य प्रति
मूल्य खो रहा
त्यागें सब संशय और सोचें
सच्चे ज्ञानोदय का
प्रकृति ने अँगड़ाई ली है
मौसम रंग नये भर लाया
धुंध छँटेगी तब निखरेगी
कुदरत की अलसायी काया
आओ मार्ग प्रशस्त करें हम
नव भाग्योदय का।
-सुरेन्द्रपाल वैद्य
मंडी (हि.प्र.)
नूतन सूर्योदय का।
जो बीत चुका पीछे छूटा
अब आगे संभल संभल चलना है
पा न सके जो गत वर्षों में
उसकी खातिर श्रम करना है
आओ मिल अभिवादन कर लें
नव अरुणोदय का
समय बहुत तेजी से आगे
कदम धर रहा
जनसेवा का भाव
नित्य प्रति
मूल्य खो रहा
त्यागें सब संशय और सोचें
सच्चे ज्ञानोदय का
प्रकृति ने अँगड़ाई ली है
मौसम रंग नये भर लाया
धुंध छँटेगी तब निखरेगी
कुदरत की अलसायी काया
आओ मार्ग प्रशस्त करें हम
नव भाग्योदय का।
-सुरेन्द्रपाल वैद्य
मंडी (हि.प्र.)
प्रकृति ने अँगड़ाई ली है
जवाब देंहटाएंमौसम रंग नये भर लाया
धुंध छँटेगी तब निखरेगी
कुदरत की अलसायी काया
आओ मार्ग प्रशस्त करें हम
नव भाग्योदय का।
बहुत सुंदर और सार्थक भावपूर्ण टिप्पणी के लिए सुरेन्द्र पाल जी आपको हार्दिक बधाई
sundar geet hai
जवाब देंहटाएंसमय बहुत तेजी से आगे
जवाब देंहटाएंकदम धर रहा
जनसेवा का भाव
नित्य प्रति
मूल्य खो रहा
त्यागें सब संशय और सोचें
सच्चे ज्ञानोदय का
मूल्य आधारित नवगीत पर बधाई ।
सुरेन्द्रपालजी की किसी रचना से पहली बार गुजरने का सौभाग्य मिल रहा है.
जवाब देंहटाएंआपके गीतों में यथार्थ चिंतन इतना सान्द्र है कि अपने कथ्य के लिए नवगीत की पंक्तियाँ बिम्बों की सहायता नहीं लेती बल्कि हाँ-ना करते हुए सीधा संवाद बनाती है.
अच्छा लगा.
लेकिन यह भी सही है कि मात्रिकता और अन्यान्य शिल्प के स्तर पर उतना उत्साहित नहीं हुआ जा सकता है.
लेकिन मान्य सीमाओं का कितना अतिक्रमण हुआ है, इस पर सोचना कवि का भी दायित्व है.
सादर
sundar geet hai
जवाब देंहटाएंजो बीत चुका पीछे छूटा
जवाब देंहटाएंअब आगे संभल संभल चलना है
पा न सके जो गत वर्षों में
उसकी खातिर श्रम करना है...आशा जगाती हुई पंक्तियाँ...बधाई.
बहुत सुंदर और सार्थक गीत. बधाई
जवाब देंहटाएं