साल नया है खुशी के पल
चलो मिल–बाँट लें।
उलझनें सुलझी हुईं
या सुलझनें उलझी हुईं हैं,
फिर पुराने मोड़ से
जुड़ती हुई राहें नई हैं
हाथ में ले हाथ
रस्ते मंजिलों के काट लें।
दौर है लफ्फाजियों का
चुटकुलों फंतासियों का,
सादगी संकुचित
पारा फैलता ऐय्याशियों का
सत्व के आखेटकों को
एक स्वर हो डाँट लें।
शब्द थोड़ा कह सके
बातें बहुत अनकही ही हैं,
जिन्दगी की राह गलबँहियाँ
कभी बतकही भी है
नेह की बिन्दी गुमानी मान
के सिर टाँक लें।
समय मिश्रित का
कुशल की व्यंजनायें दोगली हैं,
मिठासों के बोल
कुत्सित भाव की गाँठें घुली हैं
मिलावट के कंकड़ों से
दाल,चावल छाँट लें।
सियासत की झील पर
हैं स्वार्थ के उतरे कुहासे,
हारती प्रतिबद्धतायें
नीति के जुमले धुआँ से
काँपते विश्वास पर
आशा की जैकेट साँट लें।
– कृष्ण नन्दन मौर्य
(प्रतापगढ़)
चलो मिल–बाँट लें।
उलझनें सुलझी हुईं
या सुलझनें उलझी हुईं हैं,
फिर पुराने मोड़ से
जुड़ती हुई राहें नई हैं
हाथ में ले हाथ
रस्ते मंजिलों के काट लें।
दौर है लफ्फाजियों का
चुटकुलों फंतासियों का,
सादगी संकुचित
पारा फैलता ऐय्याशियों का
सत्व के आखेटकों को
एक स्वर हो डाँट लें।
शब्द थोड़ा कह सके
बातें बहुत अनकही ही हैं,
जिन्दगी की राह गलबँहियाँ
कभी बतकही भी है
नेह की बिन्दी गुमानी मान
के सिर टाँक लें।
समय मिश्रित का
कुशल की व्यंजनायें दोगली हैं,
मिठासों के बोल
कुत्सित भाव की गाँठें घुली हैं
मिलावट के कंकड़ों से
दाल,चावल छाँट लें।
सियासत की झील पर
हैं स्वार्थ के उतरे कुहासे,
हारती प्रतिबद्धतायें
नीति के जुमले धुआँ से
काँपते विश्वास पर
आशा की जैकेट साँट लें।
– कृष्ण नन्दन मौर्य
(प्रतापगढ़)
सुंदर नवगीत के लिए आपको हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आ. कल्पना जी
हटाएंदौर है लफ्फाजियों का
जवाब देंहटाएंचुटकुलों फंतासियों का,
सादगी संकुचित
पारा फैलता ऐय्याशियों का
सत्व के आखेटकों को
एक स्वर हो डाँट लें।
चाटुकारिता और पूँजीपतियों पर अच्छा व्यंग्य है। बधाई
प्रोत्साहन के लिये शुक्रिया Aakul Gkb जी
हटाएंभाई कृष्ण नन्दन को लखनऊ के नवगीत परिसंवाद 2013 के आयोजन में सुनने का मौक मिला है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति के बिम्ब और प्रतीक अत्यंत आग्रही हैं. इनको अनदेखा करना किसी भी संवेदनशील पाठक के लिए कत्तई संभव नहीं है. यह रचनाकार की असीम संभावनाओं से परिचित कराता है. लेकिन यह भी उतना ही सही है कि रचनाकार को गेयता के मूलभूत नियमों को सम्मान देना ही होगा. गीत-शिल्प और शब्द-संयोजन के प्रति संवेदना बहुत आवश्यक है.
हार्दिक शुभकामनाएँ
आ. सौरभ जी... लखनऊ के नवगीत परिसंवाद 2013 के आयोजन से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला।गीत पर आपकी प्रतिक्रिया एवं सुझावों के लिये आपका आभार। स्नेह बनाये रखें।
हटाएंदौर है लफ्फाजियों का
जवाब देंहटाएंचुटकुलों फंतासियों का,
सादगी संकुचित
पारा फैलता ऐय्याशियों का...यथार्थ चित्रण और सुन्दर सन्देश लिए हुए है आपका गीत, बधाई.
शुक्रिया आ. परमेश्वर फुंकवाल जी
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