आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना
ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना
संवादों में--
यहाँ-वहाँ की, मौसम, नारे
निभते हैं
टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे
रौशनदानी
कहाँ कभी एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना
-सौरभ पाण्डेय
(इलाहाबाद)
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना
ये आये तब
प्रीत पलों में जब करवट है
धुआँ भरा है अहसासों में
गुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना
संवादों में--
यहाँ-वहाँ की, मौसम, नारे
निभते हैं
टेबुल-मैनर में रिश्ते सारे
रौशनदानी
कहाँ कभी एसी-कमरों में ?
बिजली गुल है
खिड़की-पल्ले तनिक हटाना
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना
अच्छा कहना
बुरी तुम्हें क्या बात लगी थी
अपने हिस्से
बोलो फिर क्यों ओस जमी थी ?
आँखों को तुम
और मुखर कर नम कर देना
इसी बहाने होंठ हिलें तो
सब कह जाना
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना
-सौरभ पाण्डेय
(इलाहाबाद)
बहुत सुन्दर नवगीत ..
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद, नीरजभाईजी.
हटाएंbahut sundar geet hai
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय
हटाएंबहुत सुन्दर रचना ..
जवाब देंहटाएं:-)
हौसलाअफ़ज़ाई के लिए धन्यवाद, रीनाजी.
हटाएंजीवन में पसरे एकाकीपन, असंवाद को रेखांकित करता यह नवगीत "भले अधिक मत खुलना
जवाब देंहटाएंतुम, पर
कुछ सुन जाना
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना " जैसी पंक्तियों के माध्यम से रिश्तों में नयी ऊष्मा के संचरण का सार्थक प्रयास है. बधाई आ सौरभ जी.
भाई परमेश्वरजी, इस रचना के मर्म को छूने की आपकी सदाशयता से मैं अभिभूत हूँ.
हटाएंहार्दिक धन्यवाद
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आदरणीय ..
जवाब देंहटाएंधुआँ भरा है अहसासों में
जवाब देंहटाएंगुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना...... अनुकरणीय प्रस्तुति . हार्दिक बधाई
आपकी हौसलाअफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया. कृष्णनन्दनजी.
हटाएंधुआँ भरा है अहसासों में
जवाब देंहटाएंगुम आहट है
फिर भी देखो
एक झिझकती कोशिश तो की !
भले अधिक मत खुलना
तुम, पर
कुछ सुन जाना...... अनुकरणीय प्रस्तुति . हार्दिक बधाई