खिड़कियों के पार का मौसम बदलता है
मगर मन के शून्य में कुछ
और चलता है
यह दिसम्बर
रहे या फिर जनवरी आये
भीड़ को गोवा या केरल मदुरई भाये
जहाँ दरिया है वहीं टापू
निकलता है
फूल से
जादा उँगलियों की महक भाती
धुंध में आकाश में चिड़िया नहीं गाती
घने बादल चीरकर सूरज
निकलता है
ये पेड़
आंधी या बवंडर से नहीं डरते
विषम मौसम में नहीं ये ख़ुदकुशी करते
मौन से संवाद कर लेना
सफलता है
-जयकृष्ण राय तुषार
(इलाहाबाद)
मगर मन के शून्य में कुछ
और चलता है
यह दिसम्बर
रहे या फिर जनवरी आये
भीड़ को गोवा या केरल मदुरई भाये
जहाँ दरिया है वहीं टापू
निकलता है
फूल से
जादा उँगलियों की महक भाती
धुंध में आकाश में चिड़िया नहीं गाती
घने बादल चीरकर सूरज
निकलता है
ये पेड़
आंधी या बवंडर से नहीं डरते
विषम मौसम में नहीं ये ख़ुदकुशी करते
मौन से संवाद कर लेना
सफलता है
-जयकृष्ण राय तुषार
(इलाहाबाद)
//मगर
जवाब देंहटाएंमन के शून्य में
कुछ और चलता है |//
या फिर,
// मौन से
संवाद
कर लेना सफलता है //
बहुत सही.. गुजर रहे को समायोजित कर लेना सबसे बड़ी सफलता है.
शुभ-शुभ
शुरुआत से अंत तक उत्कृष्ट गीत...हार्दिक बधाई
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