आनन्द है उल्लास है
नववर्ष से फिर आस है
झर रहे हैं पात अविरल
डालियाँ डूँड़ी हुयीं
चलती फिरती ठठरियों की
बस्तियां बूढ़ी हुयीं
भूख ढाढस नूरा-कुश्ती
फागुनी परिहास है
कुछ नहीं बदला
जहाँ पर थे वहीँ पर हैं पड़े
उत्तरों की बाट तकते
प्रश्न ज्यों के त्यों खड़े
ढह रही उम्मीद पलछिन
खो रहा विश्वास है
बुझ चुकी है आग
भुलभुल के सहारे
बन्द कमरे की
खुली खिड़की निहारे
मधुमयी मधुमास में
कुछ सुरमयी संत्रास है
-अनिल कुमार वर्मा
(लखनऊ)
नववर्ष से फिर आस है
झर रहे हैं पात अविरल
डालियाँ डूँड़ी हुयीं
चलती फिरती ठठरियों की
बस्तियां बूढ़ी हुयीं
भूख ढाढस नूरा-कुश्ती
फागुनी परिहास है
कुछ नहीं बदला
जहाँ पर थे वहीँ पर हैं पड़े
उत्तरों की बाट तकते
प्रश्न ज्यों के त्यों खड़े
ढह रही उम्मीद पलछिन
खो रहा विश्वास है
बुझ चुकी है आग
भुलभुल के सहारे
बन्द कमरे की
खुली खिड़की निहारे
मधुमयी मधुमास में
कुछ सुरमयी संत्रास है
-अनिल कुमार वर्मा
(लखनऊ)
थहराये मन की बेबसी को सार्थक अभिव्यक्ति मिली है.
जवाब देंहटाएंसादर
बुझ चुकी है आग
जवाब देंहटाएंभुलभुल के सहारे
बन्द कमरे की
खुली खिड़की निहारे
मधुमयी मधुमास में
कुछ सुरमयी संत्रास है.... अच्छे भाव और बिम्ब
उलझे हुए प्रश्नों के उत्तर में प्रतीक्षारत आपका मन जो आस लगाये बैठा है उसे यह नववर्ष पूर्ण करे. सुन्दर गीत हेतु बधाई और नववर्ष की शुभकामनाएँ...
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