अभी चीखता
साल गया है
कानों में है दर्द अभी
चलो करें कुछ ऐसा जिससे
स्वप्न पात हरियायें फिर
नयनों में हो प्रेम कजरिया
छुप-छुप के बतियायें फिर
हर घर में फिर उजियारा हो
हर द्वारे पर दीप जलें
आँख बने ना
सागर कोई
नदिया का ना नीर ढले
आँगन में
पसराई पीड़ा
अँखियों में है गर्द अभी
मुस्कानों की चिट्ठी फिर से
अधर-अधर को दे आएँ
फिर बसंत हर मन में झूले
गम सबके चल ले आएँ
छप्पर रोटी पुस्तक कपड़े
का हो कहीं अकाल नहीं
नव-वर्ष की
नव बेला में
कोई न हो बेहाल कहीं
आज सियासी
बेदर्दी से
तन-मन भी हैं ज़र्द अभी
-गीता पंडित
(दिल्ली)
साल गया है
कानों में है दर्द अभी
चलो करें कुछ ऐसा जिससे
स्वप्न पात हरियायें फिर
नयनों में हो प्रेम कजरिया
छुप-छुप के बतियायें फिर
हर घर में फिर उजियारा हो
हर द्वारे पर दीप जलें
आँख बने ना
सागर कोई
नदिया का ना नीर ढले
आँगन में
पसराई पीड़ा
अँखियों में है गर्द अभी
मुस्कानों की चिट्ठी फिर से
अधर-अधर को दे आएँ
फिर बसंत हर मन में झूले
गम सबके चल ले आएँ
छप्पर रोटी पुस्तक कपड़े
का हो कहीं अकाल नहीं
नव-वर्ष की
नव बेला में
कोई न हो बेहाल कहीं
आज सियासी
बेदर्दी से
तन-मन भी हैं ज़र्द अभी
-गीता पंडित
(दिल्ली)
आपके नवगीत के मुखड़े ने ही एकदम से ध्यान खींचा है, गीताजी.
जवाब देंहटाएंसबसे अधिक प्रसन्नता हुई है इस प्रयास में मात्रिकता के प्रति आपके आग्रह से.
विधा के प्रति ऐसी संवेदनीलता एक अत्यंत शुभ लक्षण है.
बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें..
हार्दिक आभार आपका ..
हटाएंक्रिसमस की बहुत बधाई व शुभ कामनाएँ ..
मुस्कानों की चिट्ठी फिर से
जवाब देंहटाएंअधर-अधर को दे आएँ ..... सुन्दर भावयुक्त बेहतरीन गीत
हार्दिक आभार
हटाएंक्रिसमस की बहुत बधाई व शुभ कामनाएँ
हार्दिक आभार आपका ..
जवाब देंहटाएंआपको भी क्रिसमस की बहुत बधाई व शुभ कामनाएँ ..
सादर ..
आपका यह गीत जहाँ आस पास जड़ जमाये दुखो का लेखा जोखा लेता है वहीं उनको दूर करने की कोशिशों के लिए प्रेरित भी करता है...सुन्दर नवगीत के लिए बधाई..
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