25 दिसंबर 2013

१५. बीत गया इक और बरस

बीत गया इक और बरस !

कभी धूप थी कभी थी छाँव
कभी था छूटा पीहर गाँव
चलते चलते बीच डगर में
कभी थके से बोझिल पाँव
अँगुलि थामे
संग चला वो
गाता जाए गीत सरस
बीत गया इक और बरस

किसने वादे-वचन निभाए
कितने टूटे, निभ न पाए
कितने तारे टूटे नभ से
कितने अपने हुए पराए
कभी आँख
भर आई बदली
कभी उल्लास भरा अंतस
बूँदों सा वो गया बरस

आज हथेली पर देखी थी
घटती बढती जीवन रेखा
मन के कागद पर लिख बैठी
सुख और दुःख का अनमिट लेखा
आस निरास
की भरी पिटारी
बाँध बिताए रैन –दिवस
पतझर सा झर गया बरस

बीती घड़ियाँ भूल न पाऊँ
आगत-स्वागत दीप जलाऊँ
सुधियाँ बाँध रही हैं डोरी
पल छिन की मैं माल बनाऊँ
दूर खड़ी
भावी से पूछूँ
ले आई क्या नेह परस ?
बीत गया इक और बरस

-शशि पाधा
(हैगर्सटाउन यू.एस.ए.)

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर गीत है आ शशी जी, पूरे जीवन का उसके विविध रंगों का लेखा जोखा प्रस्तुत करता है और साथ ही नए वर्ष में शुभ की प्रतीक्षा करता है...हार्दिक बधाई..

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