कल के पन्नों पर हम लिख दें
अपना भी इतिहास
बीज रोपते हाथों की
उष्मा बन जाएँ
चट्टानी धरती पर
झरनों से बह जाएँ
सूखे कंठों की खातिर हो लें
बुझने वाली प्यास
सौंधी मिट्टी वाला आँगन
हर चूल्हे की आँच
और न टूटे
गलती से भी
संबंधों के काँच
घुटते रिश्तों में फिर भर दें
कतरा –कतरा साँस
कोहरे की धुँधली परतों से
क्या डरना है ?
लू - लपटों से भरी राह भी
तय करना है
ठानेंगे तो हो जाएगा
बित्ते भर आकाश
- रोहित रूसिया
छिंदवाड़ा
अपना भी इतिहास
बीज रोपते हाथों की
उष्मा बन जाएँ
चट्टानी धरती पर
झरनों से बह जाएँ
सूखे कंठों की खातिर हो लें
बुझने वाली प्यास
सौंधी मिट्टी वाला आँगन
हर चूल्हे की आँच
और न टूटे
गलती से भी
संबंधों के काँच
घुटते रिश्तों में फिर भर दें
कतरा –कतरा साँस
कोहरे की धुँधली परतों से
क्या डरना है ?
लू - लपटों से भरी राह भी
तय करना है
ठानेंगे तो हो जाएगा
बित्ते भर आकाश
- रोहित रूसिया
छिंदवाड़ा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (29-12-2013) को "शक़ ना करो....रविवारीय चर्चा मंच....चर्चा अंक:1476" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!!
- ई॰ राहुल मिश्रा
लाजवाब नवगीत ...
जवाब देंहटाएंजीवन में जो भी ज़रूरी है उसके लिए एक कोशिश की अलख जगाता है आपका यह सुन्दर नवगीत. आपको हार्दिक बधाई और नव वर्ष पर इन सारी कोशिशों की कामयाबी के लिए शुभकामनाएँ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत....!!!
जवाब देंहटाएं