गेह तजो या देवों जागों
बहुत हुआ निद्रा व्यापार
कब तक आशिर्वचनो से
पीड़ा के तन को सहलाऊँगा
वरदानो की तारीखों को
कब तक आगे खसकाऊँगा
कब तक भ्रम में रखूँ उम्मीदें
कब तक ओढूँ
यह अपकार
महुआ की माई आई थी
कल श्रीहरि हित लिए कलावा
थाली में दीपक अक्षत था
आँखों में गहरा पछतावा
शायद अब की
समध्याने का
हुआ है दुगुना माँग पसार
साँस साँस बंधक है मेरी
श्रद्धामय दृढ विश्वासों की
निशिवासर देहरी पर बैठे
पावन निश्छल उपवासों की
देवों लो संज्ञान
या मुझे
वरदानो का दो अधिकार
-सीमा अग्रवाल
कोरबा (छत्तीसगढ़)
बहुत हुआ निद्रा व्यापार
कब तक आशिर्वचनो से
पीड़ा के तन को सहलाऊँगा
वरदानो की तारीखों को
कब तक आगे खसकाऊँगा
कब तक भ्रम में रखूँ उम्मीदें
कब तक ओढूँ
यह अपकार
महुआ की माई आई थी
कल श्रीहरि हित लिए कलावा
थाली में दीपक अक्षत था
आँखों में गहरा पछतावा
शायद अब की
समध्याने का
हुआ है दुगुना माँग पसार
साँस साँस बंधक है मेरी
श्रद्धामय दृढ विश्वासों की
निशिवासर देहरी पर बैठे
पावन निश्छल उपवासों की
देवों लो संज्ञान
या मुझे
वरदानो का दो अधिकार
-सीमा अग्रवाल
कोरबा (छत्तीसगढ़)
सुन्दर नवगीत हेतु हार्दिक बधाई सीमा जी
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