6 मई 2014

कार्यशाला- ३३ पात पीपल का

यह कार्यशाला विशेष है- इस अर्थ में कि इसे पहले अनुभूति में प्रकाशित किया गया और बाद में पाठशाला में लाया गया। रचनाकारों और पाठकों के बीच नई नई परंपराओं को बदल बदल कर लाने का प्रयत्न सदा रहा है। समूह में नवगीत को प्रकाशित करना, फिर ठीक करना, फिर अनुभूति में प्रकाशित करना, यह क्रम नये रचनाकारों के लिये बना रहा है। सीधे अनुभूति में गीत प्रकाशित करने का निश्चय इसलिये लिया गया ताकि नये रचनाकारों को अपने आप बिना सहायता के नवगीत रचने का आत्मविश्वास बने और अस्वीकृति का अनुभव कैसा होता है उसकी भी जानकारी मिल सके। एक रचनाकार की एक ही रचना वाले नियम के चलते विशेषांक में कुछ अच्छे नवगीत भी प्रकाशित होने से रह गए थे। उन्हें  भी यहाँ स्थान मिलेगा। साथ ही जिनके नवगीत देर में तैयार हुए थे उन्हें भी यहाँ प्रकाशित किया जा सकेगा।
- टीम नवगीत की पाठशाला

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