13 जुलाई 2014

४. बादल अगर बरस जाता- बनज

बादल अगर बरस जाता तो
धरती को जीवन मिल जाता
पौधों को मधुवन मिल जाता
नदिया को यौवन मिल जाता

मुस्कानें छा जाती पर्वत
के शिखरों से घाटी तक
मौन न रहते कंकर पत्थर
गीत सुनाती माटी तक
मस्जिद को अज़ान मिल जाती
मंदिर को वंदन मिल जाता

राजतिलक होता फूलों का
कलियाँ फिर होती पटरानी
गीत शोखियों से भर जाते
हो जाती चंचला कहानी
हाथों को पूजन मिल जाता
पूजन को चन्दन मिल जाता

मेघों की आवा-जाही से
नभ में चित्र हज़ारों बनते
कोयल, मोर, पपीहे के घर
त्योंहारों के पाँव थिरकते
चेहरों को आखें मिल जाती
आखों को अंजन मिल जाता
बादल अगर बरस जाता तो
धरती को जीवन मिल जाता

- बनज कुमार बनज

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