18 जुलाई 2014

१४. बरखा रानी नाम तुम्हारे- कल्पना रामानी

बरखा रानी! नाम तुम्हारे,
निस दिन मैंने छंद रचे
रंग-रंग के भाव भरे,
सुख-दुख के आखर चंद रचे

पाला बदल-बदल कर मौसम,
रहा लुढ़कता इधर उधर
कहीं घटा घनघोर कहीं पर,
राह देखते रहे शहर

कहीं प्यास तो कहीं बाढ़ के,
सूखे-भीगे बंद रचे

कभी वादियों में सावन के,
संग सुरों में मन झूमा
कभी झील-तट पर फुहार में,
पाँव-पाँव पुलकित घूमा

कहीं गजल के शेर कह दिये,
कहीं गीत सानंद रचे

कभी दूर वीरानों में,
गुमनाम जनों के गम खोदे
अतिप्लावन या अल्प वृष्टि ने,
जिनके सपन सदा रौंदे

गाँवों के पैबंद उकेरे,
शहर चाक-चौबन्द रचे

- कल्पना रामानी
मुंबई

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर नवगीत
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-06-2015) को "गुज़र रही है ज़िन्दगी तन्‌हा" {चर्चा - 2011} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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