19 जुलाई 2014

१६. घटाएँ - महेन्द्र भटनागर

छा गये सारे गगन पर
नव घने घन मिल मनोहर,
दे रहे हैं त्रस्त भू को
आज तो शत-शत दुआएँ!

देख लो, कितनी
अँधेरी हैं घटाएँ!

कर रहा है व्योम गर्जन,
मंद्र ध्वनि से, वाद्य-सा बन,
चाहता देना सुना जो आज
सारी स्वर-कलाएँ!

देख लो, ये
व्योम-चेरी हैं घटाएँ!

अरुक बरसो बिन्दु जल के
तीव्र गति से, ना कि हलके,
विश्व भर में वृष्टि कर दो, दूर
हों सारी बलाएँ!

देख लो,
कितनी घनेरी हैं घटाएँ!

- महेन्द्र भटानागर

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