30 जुलाई 2014

३७. टूटा छप्पर - विद्यानंदन राजीव

टूटा छप्पर औसारे का
छत में पड़ी दरार
फैंक गई गठरी भर चिन्ता
बारिश की बौछार

पहले पहले काले बादल
लाये नहीं उमंग
काम काज के बिना
बहुत पहले से
मुट्ठी तंग
किस्मत का छाजन रिसता है
क्या इसका उपचार

कब से पड़ा कठौता खाली
दाना हुआ मुहाल
आँखों के आगे
मकड़ी का
घना घना सा जाल
नहीं मयस्सर थकी देह को
कोदों और सिवार

खुशियाँ लिखी गई हैं
अब तक भरे पेट के नाम
सपने देखे गए
मजूरी के
अब तक नाकाम
कैसे खो जाए ऋतु स्वर में
अंतर्मन लाचार

- विद्यानंदन राजीव

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