18 अगस्त 2014

५. कौन गोवर्धन उठाए

सधे हुए होठों को बाँसुरी बजाने दो
मोरपंख रत्नजड़ित मुकुट पे सजाने दो

जीवन भर विष पीकर मीरा ने पद गाये
जन्मों के अन्धे हम सूरदास कहलाये
उभर रहीं मन में जो
छवियाँ, वो आने दो

द्वापर में कृष्ण हुए त्रेता में राम हुए
सीता के संग कभी राधा के नाम हुए
हे भटके मन मुझको
वृन्दावन जाने दो

तुम तो हो निराकार सृष्टि का सृजन तुमसे
ऋषियों का योग- ज्ञान प्रेम का मिलन तुमसे
मुझको भी प्रेम और
भक्ति के खजाने दो

हे प्रभु तुम कालपुरुष और हम खिलौने हैं
हम तेरे मस्तक पर सिर्फ़ एक दिठौने हैं
श्रद्धा के फूलों से
जन्मदिन मनाने दो

- जयकृष्ण राय तुषार
इलाहाबाद

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