18 अगस्त 2014

६. हाथ हमारे छोटे छोटे

दूध-दही के गागर ऊँचे
हाथ हमारे छोटे-छोटे

सुख-सुविधा के घर में डाले
तुमने भारी-भारी ताले
हमको छूँछी छाछ दिखाकर
तुमने सब नवनीत सँभाले

खा जाएँगे इक दिन तुमको
शाप हमारे मोटे-मोटे

सारा बचपन छील गए जो
गेंद हमारी लील गए जो
हम भी उनका फन नाथेंगे
जीवन-रस कर नील गये जो

अरे! कभी बदलेंगे आख़िर
भाग हमारे खोटे-खोटे

अपना कद ढकने को आतुर
ओ रे! वैभव के शकटासुर
इतने पिए पयोधर विष के
हैं कटु और मुखर अपने सुर

बड़े-बड़े दिग्गज भी इक दिन
पाँव हमारे लोटे-लोटे

- पंकज परिमल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।