दूध-दही के गागर ऊँचे
हाथ हमारे छोटे-छोटे
सुख-सुविधा के घर में डाले
तुमने भारी-भारी ताले
हमको छूँछी छाछ दिखाकर
तुमने सब नवनीत सँभाले
खा जाएँगे इक दिन तुमको
शाप हमारे मोटे-मोटे
सारा बचपन छील गए जो
गेंद हमारी लील गए जो
हम भी उनका फन नाथेंगे
जीवन-रस कर नील गये जो
अरे! कभी बदलेंगे आख़िर
भाग हमारे खोटे-खोटे
अपना कद ढकने को आतुर
ओ रे! वैभव के शकटासुर
इतने पिए पयोधर विष के
हैं कटु और मुखर अपने सुर
बड़े-बड़े दिग्गज भी इक दिन
पाँव हमारे लोटे-लोटे
- पंकज परिमल
हाथ हमारे छोटे-छोटे
सुख-सुविधा के घर में डाले
तुमने भारी-भारी ताले
हमको छूँछी छाछ दिखाकर
तुमने सब नवनीत सँभाले
खा जाएँगे इक दिन तुमको
शाप हमारे मोटे-मोटे
सारा बचपन छील गए जो
गेंद हमारी लील गए जो
हम भी उनका फन नाथेंगे
जीवन-रस कर नील गये जो
अरे! कभी बदलेंगे आख़िर
भाग हमारे खोटे-खोटे
अपना कद ढकने को आतुर
ओ रे! वैभव के शकटासुर
इतने पिए पयोधर विष के
हैं कटु और मुखर अपने सुर
बड़े-बड़े दिग्गज भी इक दिन
पाँव हमारे लोटे-लोटे
- पंकज परिमल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।