श्रीकृष्ण आकर इस जहाँ में
मारिए हर कालिया
वे घूमते हैं घर गली में, विषभरी ले पोटली
वातावरण दूषित हुआ, सबने ह्रदय पर चोट ली
देवकी के गर्भ में ही, मूक
शिशु को खा लिया
पाप का पुतला खड़ा है, खड्ग लेकर हाथ में
आ रही तलवार लेकर, पूतना हर बात में
सो गया है चैन से वो, दूध
जिसने पी लिया
हर ताल पर बैठे बकासुर, घात में उस मीन की
नग्न रहती जो सदा ही, क्या कहें उस दीन की
डूब कर मर जाए कैसे, जन्म जो
जल में लिया
इस तरह फैला हलाहल, जल रहा है जल यहाँ
हो रहे ओझल नजारे, उठ रहा है यूँ धुआँ
मूक पक्षी मर रहे हैं मंत्र
स्वाहा जप लिया
नीला हुआ आकाश विष से साँस लेना भी कठिन
शोर है चहुँ ओर भारी कौन सुनता वेणुधुन
कर्णपल्लव सुन रहे हैं, आँख ने
बस रो लिया
- पवन प्रताप सिंह 'पवन
मारिए हर कालिया
वे घूमते हैं घर गली में, विषभरी ले पोटली
वातावरण दूषित हुआ, सबने ह्रदय पर चोट ली
देवकी के गर्भ में ही, मूक
शिशु को खा लिया
पाप का पुतला खड़ा है, खड्ग लेकर हाथ में
आ रही तलवार लेकर, पूतना हर बात में
सो गया है चैन से वो, दूध
जिसने पी लिया
हर ताल पर बैठे बकासुर, घात में उस मीन की
नग्न रहती जो सदा ही, क्या कहें उस दीन की
डूब कर मर जाए कैसे, जन्म जो
जल में लिया
इस तरह फैला हलाहल, जल रहा है जल यहाँ
हो रहे ओझल नजारे, उठ रहा है यूँ धुआँ
मूक पक्षी मर रहे हैं मंत्र
स्वाहा जप लिया
नीला हुआ आकाश विष से साँस लेना भी कठिन
शोर है चहुँ ओर भारी कौन सुनता वेणुधुन
कर्णपल्लव सुन रहे हैं, आँख ने
बस रो लिया
- पवन प्रताप सिंह 'पवन
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