15 जनवरी 2010
१४- हिम नदी में कूदकर
हिम नदी में कूदकर मौसम
इन दिनों ज्यों स्नान करता है
हर तरफ है एक कुहरा आवरण
आग ने भी शान्ति सी कर ली वरण
सूर्य खुद मफलर गले में बाँध
शीत का ऐलान करता है
हिम नदी में कूदकर मौसम
इन दिनों ज्यों स्नान करता है
शाम होते ही जगे सोये सपन
ढूँढते हैं शयन शैया में तपन
एक कोने में दुबक दीपक निबल
शीत का गुणगान करता है
हिम नदी में कूदकर मौसम
इन दिनों ज्यों स्नान करता है
--गिरिमोहन गुरु
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कार्यशाला : ०६
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हिम सागर में डूब गया कुछ ऐसे मौसम -
जवाब देंहटाएंभक्ति-भावना से ज्यों कोई नहा रहा हो गंगा!
ऐसे में रच डाला भाई, गीत बहुत ही चंगा!!
'सलिल' नत शिर लेखनी ले हाथ
जवाब देंहटाएंगिरि गुरु का मान करता है..
बिम्ब शैली शब्द भाव-प्रवाह
सत्य अनुपम, गान करता है..
सूर्य खुद मफलर गले में बाँध
जवाब देंहटाएंशीत का ऐलान करता है
-- वाह क्या बिम्बात्मक कल्पना है |
बधाई |
अवनीश तिवारी
एक बहुत ही अच्छा गीत.
जवाब देंहटाएंगिरिमोहन गुरु जी के पहले नवगीत की भाँति यह भी इस कार्यशाला की शोभा है। हिमनदी में कूद कर मौसम... बहुत सुंदर मानवीकरण किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत मधुर शब्द बहुत मधुर कल्पना... पाठशाला सार्थक हो रही है।
जवाब देंहटाएंशीत का ऐलान करना/ सूर्य का गले में मफलर बंधना/ और मौसम का हिम नदी में स्नान करने की कल्पना
जवाब देंहटाएंअति सुंदर कल्पना है. Thank you.
हिम नदी में कूदकर मौसम
जवाब देंहटाएंइन दिनों ज्यों स्नान करता है
ऐसी कवि की कल्पना के क्या कहने.....
बढ़िया...
दीपिका जोशी 'संध्या'
हिम नदी में कूदकर मौसम
जवाब देंहटाएंइन दिनों ज्यों स्नान करता है
बहुत सुन्दर और सजीव कल्पना है इन पँक्त्तियों में।
मधुर गीत के लिये धन्यवाद ।
शशि पाधा