27 फ़रवरी 2010

१३- प्रत्यंचा टूट गई : कैलाश पचौरी

प्रत्यंचा टूट गई
छूट गए फूलों के वाण
ऋतुओं के गंध कलश छलक गए

रेशमी हवाओं की
रस्सियाँ भाँजता
बटरोही वसंत
वन-बगीचों में झाँकता
कोयल के पैने संधान
अंध कूप में गहरे सरक गए

शहज़ादे सलीम-सा
बौराया आम
मेंहदी हसन-सी
ग़ज़ल पढ़ती है शाम
पहाड़ों पर नदी के पैतान
गुलमोहर निगाहों में करक गए

जंगल ने ओढ़ ली
खुशबू की चादर
धरती ने लगा ली
जैसे महावर
रंगों के तन गए वितान
गीत-क्षण शीशे-सा दरक गए

--
कैलाश पचौरी

9 टिप्‍पणियां:

  1. आप और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएँ...nice

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  2. रेशमी हवाओं की
    रस्सियाँ भाँजता
    बटरोही वसंत
    वन-बगीचों में झाँकता


    सुंदर..

    होली की शुभ-कामनाएँ आपको


    सस्नेह
    गीता

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  3. kailashji, beshak prtyacha toot gaee
    apka geet nisandeh Shajade salim sa ashikana laga

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  4. शहज़ादे सलीम-सा
    बौराया आम
    मेंहदी हसन-सी
    ग़ज़ल पढ़ती है शाम
    पहाड़ों पर नदी के पैतान
    गुलमोहर निगाहों में करक गए

    अभिनव प्रतीक ने मन प्रसन्न कर दिया. मनभावन रचना. बधाई..

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर,मनभावन रचना के लिये धन्यवाद ।

    शशि पाधा

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