घिर-घिर आए मेघा सुधि के
नभ से बाँधी डोर
झूलों में
आ झूला बचपन
अंग-अंग थिरकन,
सखी-सहेली
भाई-बहिना
अंतर की धङ़कन
कजरी बनकर
गाए माई
प्रीत बहे हर पोर
देस बिराने भेज दिया क्यूँ
पीर मचाए शोर
छोटी-छोटी
नाव बनाकर
पानी में तैराना
छोटे-छोटे
पैरों से फिर
छप-छप करते जाना
यादों से है
भरा खजाना
सावन के हर छोर
तीज-त्यौहार की गुंजियों में
नाचे नैहर मोर
ओ रे बदरा!
मेरे पिया की
पाती काहे ना लाए
दूर चला जा
बैरी मुझको
तनिक नहीं तू भाए
बूँद-बूँद
बन पोत नाचते
आ अँखियों की कोर
संग में ले आ प्रियतम, मानूँ
तुमको चित्त का चोर
--
गीता पंडित
बहुत सुन्दर, बधाई।
जवाब देंहटाएंछोटी-छोटी
जवाब देंहटाएंनाव बनाकर
पानी में तैराना
छोटे-छोटे
पैरों से फिर
छप-छप करते जाना
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ|
सुन्दर नवगीत के लिए बधाई|
यादों से है
जवाब देंहटाएंभरा खजाना
सावन के हर छोर
तीज-त्यौहार की गुंजियों में
नाचे नैहर मोर
....बहुत सुंदर गीत
boond boond ban ......aa akhiyon ki kore, umda upma hai,
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत
जवाब देंहटाएंनवगीत की समस्त विशिष्टताओं को अपने आंचल में समेटे यह सुन्दर रचना मनमोहक है। जहाँ तक अंतिम पंक्ति का प्रश्न है यदि वहाँ श्रृद्धा ही रखना है तो " अति श्रृद्धा उपजे" किया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंगीता जी का यादों का खजाना किसी को भी अपना सा लग सकता है. बचपन में हम सबने कागज की नाव चलायी है, उसमें चीटें जी को बिठा देते थे और उसके पीछे पीछे भगते थे, छप-छप पानी में छपकना कैसे भूल सकता है. यादों का यह गीत भीतर उतर गया. मेघदूत से उलाहना भी पसन्द आयी.
जवाब देंहटाएंयादों का यह गीत बहुत सुंदर है.
जवाब देंहटाएंहो, बिधना रे !
काहे दिया परदेस!
सावन के झूले,
सखियों संग खेले
बाबुल का प्यार,
मैया का दुलार
भैया को चौबारे ,
मुझे भेज दिया बिराने देस
हो,बिधना रे!काहे दिया परदेस!
यह नवगीत तो मन में गुदगुदी मचाता चला गया!
जवाब देंहटाएंओ रे बदरा!
जवाब देंहटाएंमेरे पिया की
पाती काहे ना लाए
दूर चला जा
बैरी मुझको
तनिक नहीं तू भाए
ati sunder
baadal aur yaadon ka sanyog bahut sundar hai
जवाब देंहटाएंझूलों में
जवाब देंहटाएंआ झूला बचपन
अंग-अंग थिरकन,
सखी-सहेली
भाई-बहिना
अंतर की धङ़कन
कजरी बनकर
गाए माई
प्रीत बहे हर पोर
देस बिराने भेज दिया क्यूँ
पीर मचाए शोर
ओ रे बदरा!
मेरे पिया की
पाती काहे ना लाए
दूर चला जा
बैरी मुझको
तनिक नहीं तू भाए
बूँद-बूँद
बन पोत नाचते
आ अँखियों की कोर
संग में ले आ प्रियतम, मानूँ
तुमको चित्त का चोर
इन पंक्तियों को पढ़कर तो सावन क्या जेठ भी बरस उठेगा गीताजी
बेषक अंतरर्मन को आंदोलित करनेवाले उद्गार हैं
छोटी-छोटी
जवाब देंहटाएंनाव बनाकर
पानी में तैराना
छोटे-छोटे
पैरों से फिर
छप-छप करते जाना
यादों से है
भरा खजाना
सावन के हर छोर
अंतस मे गहरे तक पैठी यादों को ताज़ा करके सावनी बरसात मे एक बार पुनः बहते पानी मे पाँव छपछपाने को आतुर करता सा नवगीत बहुत भाया |
स्मृति संयोजन बहुत ही अपना सा है |
स्मृतिपरक सुरुचिपूर्ण रचना.
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