28 सितंबर 2010

१२. मेघ डाकिया : पं.गिरिमोहन गुरु

ले आया पावस के पत्र
मेघ डाकिया

मौसम ने धूप दी उतार
पहन लिए बूँदों के गहने
खेतों में झोंपड़ी बना
कहीं-कहीं घास लगी रहने
बिना पिए तृषित पपीहा
कह उठा पिया-पिया-पिया

झींगुर के सामूहिक स्वर
रातों के होंठ लगे छूने
दादुर के बच्चों का शोर
तोड़ रहे सन्नाटे सूने
करुणा प्लावित हुई घटा
अंबर ने क्या नहीं दिया
--
पं.गिरिमोहन गुरु

7 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तम द्विवेदी28 सितंबर 2010 को 7:18 pm बजे

    अच्छी अभिव्यक्ति॰॰॰

    मौसम ने धूप दी उतार
    पहन लिए बूँदों के गहने

    बधाई!

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  2. खेतों में झोंपड़ी बना
    कहीं-कहीं घास लगी रहने
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ| बहुत सुन्दर नवगीत|

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  3. मौसम ने धूप दी उतार
    पहन लिए बूँदों के गहने
    और
    करुणा प्लावित हुई घटा
    अंबर ने क्या नहीं दिया
    पंक्तियाँ अच्छी लगीं .

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  4. बिना पिए तृषित पपीहा
    कह उठा पिया-पिया-पिया

    वाह.. वाह... गुरु जी! वाकई गुरु सी रचना है. पढ़कर आनंद मिला. होशंगाबाद कब बुला रहे हैं?... मैथिलेन्द्र जी को नमन कहिये.

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  5. ले आया पावस के पत्र
    मेघ डाकिया

    मौसम ने धूप दी उतार
    पहन लिए बूँदों के गहने
    खेतों में झोंपड़ी बना
    कहीं-कहीं घास लगी रहने
    बिना पिए तृषित पपीहा
    कह उठा पिया-पिया-पिया

    एक और अति मनभावन नवगीत के लिए टीम
    अनुभूति को बधाई । गुरू देव आपको पढ़ते हुए
    नवगीत सीखने का मजा ही कुछ और है इसीलिए
    हम इस मंच पर आपकी अनवरत उपस्थिति के आकांक्षी है।

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  6. "ले आया पावस के पत्र
    मेघ डाकिया"

    बहुत सुंदर है. बधाई.

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