30 सितंबर 2010

१३. मेघ बरसो रे : कमलेशकुमार दीवान

मेघ बरसो रे
प्यासे देश
वहाँ सब रीत गए
ताल-तलैया-नदियाँ सूखीं
रीता हिया का नेह
मेघ बरसो रे
पिया के देश
वहाँ सब बीत गए

कुम्हलाए हैं
कमल-कुमुदनी
घास-पात और देह
उड़-उड़ टेर लगाए पपीहा
होते गए विदेह
मेघ हर्षो रे
प्यासे देश
यहाँ सब रीत गए
--
कमलेशकुमार दीवान

4 टिप्‍पणियां:

  1. कमलेश जी!
    एक नए कथ्य को समाविष्ट करता अच्छा नवगीत है. बधाई.

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  2. दीवानजी छोटे किन्तु सरस व सुमधुर “ाब्द संयोजन में आपकी दीवानगी देखते ही बनती है
    सच कहूं तो हम भी आपके दीवाने हो गए हैं । क्या रखना चाहेंगे पपीहे की तरह अपने दीवानों की सूचि में मेरा नाम यदि हां तो फिर देर किस बात की। फिलहाल तो बधाई स्वीकार हो।

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