2 अक्तूबर 2010

१५. ओ बदरा रे, मेघा रे : शारदा मोंगा

बन-बन, डार-डार, मेघा रे
ओ बदरा रे, मेघा रे

उमड़-घुमड़कर बदरा बरसे
बिजुरी चमके, दामिनी दरसे
दादुर, मोर, पपीहा बोले
मनवा डोले होले-होले
गड़-गड़ गरजे, रिमझिम बरसे
इन्द्रधनुष सतरंगी रे
ओ बदरा रे, मेघा रे

कारी घटा घन फिर उमड़ावत
पपीहा बोले मन घबरावत
लरज-लरज बदरिया बरसे
हिय में सुधि प्रियतम की सरसे
मेघ, मल्हार, बजे बंसुरिया
राधा सँग नाचे साँवरिया
ओ बदरा रे, मेघा रे
--
शारदा मोंगा

5 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तम द्विवेदी2 अक्तूबर 2010 को 8:33 pm बजे

    एक अच्छे नवगीत पर शारदा जी को बधाई!

    लरज-लरज बदरिया बरसे
    हिय में सुधि प्रियतम की सरसे
    मेघ, मल्हार, बजे बंसुरिया
    राधा सँग नाचे साँवरिया
    ओ बदरा रे, मेघा रे

    अच्छी पंक्तियाँ,धन्यवाद!

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  2. शारदाजी
    सावन भादो की घटा से घनीभूत
    आपके नवगीत ने एक फिर प्रीत की रीत को
    बहाल कर दिया है । बेशक इसका असर
    आगामी कार्यशाला में दिखेगा,फिलहाल आपकी पंक्तियों में ही आपको बधाई देने का मन करता है यदि आपकी अनुमति हो।

    उमड़-घुमड़कर बदरा बरसे
    बिजुरी चमके, दामिनी दरसे
    दादुर, मोर, पपीहा बोले
    मनवा डोले होले-होले
    गड़-गड़ गरजे, रिमझिम बरसे
    इन्द्रधनुष सतरंगी रे
    ओ बदरा रे, मेघा रे

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  3. विमल कुमार हेड़ा।5 अक्तूबर 2010 को 9:16 am बजे

    उमड़-घुमड़कर बदरा बरसे
    बिजुरी चमके, दामिनी दरसे
    दादुर, मोर, पपीहा बोले
    मनवा डोले होले-होले
    गड़-गड़ गरजे, रिमझिम बरसे
    इन्द्रधनुष सतरंगी रे
    ओ बदरा रे, मेघा रे
    बहुत ही सुन्दर गीत के लिये शारदा जी को बहुत बहुत बधाई
    धन्यवाद।
    विमल कुमार हेड़ा।

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