एक साल गया
आया है नया।
बच्चों को संग लिये
निकली है बया।
घोंसले से बाहर
कोहरे के पार पंख फैलाए
एक बड़ा, एक नीला आसमान है।
माना था गर्द
और बहुत दर्द।
पलकों पर आ जमा
मौसम भी सर्द।
एक घुप्प सफ़ेद अंधेरे
ठिठुरन के घेरे से बहुत ज़्यादा
दो हथेलियों की उष्मा में जान है।
बीता सो बुलबुला
शबनम में सब धुला।
एक हवा पत्तों को
आज भी रही झुला।
एक किरण पास आ
ज़ख्म सहलाती है हौले से गाती है
हौसले के पंखों में लंबी उड़ान है।
-अभिरंजन कुमार
इस अच्छे प्रयास हेतु बहुत-बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंबीता जो बुलबुला,शबनम में सब धुला
जवाब देंहटाएंएक हवा पत्तों को , आज भी रही झुला।
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति , बधाई।
बीता सो बुलबुला
जवाब देंहटाएंशबनम में सब धुला।
एक हवा पत्तों को
आज भी रही झुला।
एक किरण पास आ
ज़ख्म सहलाती है हौले से गाती है
हौसले के पंखों में लंबी उड़ान है।
sunder likha hai saral shbdon me bahut kuchh hai .
aap ko badhai
saader
rachana
बहुत सुंदर रचना जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबीता सो बुलबुला
जवाब देंहटाएंशबनम में सब धुला।
एक हवा पत्तों को
आज भी रही झुला।
सुंदर, मनोहारी प्रस्तुति अभिरंजन जी| बधाई|
सुंदर रचना...
जवाब देंहटाएंआभार और
बधाई आपको....
शुभ कामनाएँ...
गीता पंडित
हार्दिक स्वागत अभिरंजन जी| बधाई|
जवाब देंहटाएंबीता सो बुलबुला
शबनम में सब धुला।
एक हवा पत्तों को
आज भी रही झुला।
एक किरण पास आ
ज़ख्म सहलाती है हौले से गाती है
हौसले के पंखों में लंबी उड़ान है।