13 जून 2011

११. फूले फूल पलाश

फूले फूल पलाश कि सपने पर फैलाए रे

फिर मौसम के लाल अधर से
मुस्कानों की झींसी बरसे
आमों के मंजर की खुशबू पवन चुराए रे

पकड़ी के टूसे पतराए
फूल नए टेसू में आए
देवदार-साखू के वन लगते महुआये रे

धरती लगा महावर हुलसी
ठुमक रही चौरे पर तुलसी
हरी घास की हरी चुनरिया सौ बल खाए रे

धूप फसल का तन सहलाए
मन का गोपन भेद बताए
पेड़ों की फुनगी पर तबला हवा बजाए रे

वंशी-मादल के स्वर फूटे
गाँव-शहर के अंतर टूटे
भेद-भाव की शातिर दुनिया इसे न भाए रे।

-नचिकेता

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर नवगीत, बहुत बहुत बधाई रचनाकार को।

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  2. धरती लगा महावर हुलसी
    ठुमक रही चौरे पर तुलसी
    हरी घास की हरी चुनरिया सौ बल खाए रे
    --
    अद्वितीय!

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  3. धूप फसल का तन सहलाए
    मन का गोपन भेद बताए
    पेड़ों की फुनगी पर तबला हवा बजाए रे
    बहुत सुंदर नवगीत
    rachana

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  4. नचिकेता का नवगीत पाठशाला के लिए सम्मान का विषय है और नये नवगीतकारों के लिये बहुत कुछ ग्हण करने के लिए एक सुनहरा अवसर है। वधाई बहुत अच्छै नवगीत को पाठशाला में भेजने के लिए।

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  5. भाई नचिकेता जी सुंदर गीत बहुत बहुत बधाई |हम तक पहुँचाने के लिये नवगीत की पाठशाला को बधाई |

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  6. फूले फूल पलाश कि सपने पर फैलाए रे

    फमौसम के लाल अधर
    मुस्कानों की झींसी

    धरती लगा महावर हुलसी
    ठुमक रही चौरे पर तुलसी
    हरी घास की हरी चुनरिया सौ बल खाए रे

    पेड़ों की फुनगी पर तबला हवा बजाए रे

    क्या सुन्दर प्रतीक और बिम्ब प्रस्तुत किया है. अतुलनीय . बधाई.

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