22 अगस्त 2011

१०. बहुत घुटन है

बहुत घुटन है
बंद घरो में, खुली हवा तो आने दो
संशय की खिड़कियाँ
खोल दो, किरनों को मुस्काने दो

ऊंचे- ऊँचे भवन उठ रहे
पर आंगन का नाम नहीं,
चमक - दमक आपा- धापी है
पर जीवन का नाम नहीं

लौट न जाये
सूर्य द्वार से,
नया सबेरा लाने दो

हर माँ अपना राम जोहती
कटता क्यों बनवास नहीं
मेहनत की सीता भी भूखी
कटता क्यों उपवास नहीं

बाबा की सूनी
आँखों में,
चुभता तिमिर भगाने दो

हर उदास राखी गुहारती
भाई का वह प्यार कहाँ
डरे- डरे अब रिश्ते कहते
खुशियों का त्योहार कहाँ

गुमसुम गलियों में
ममता की
खुशबू तो बिखराने दो

डा० राधेश्याम बंधु
दिल्ली

9 टिप्‍पणियां:

  1. साधुवाद भाई राधेश्याम बन्धु को इस श्रेष्ठ नवगीत के लिए| कुछ पंक्तियाँ निश्चित ही स्मरणीय हैं, यथा -

    हर माँ अपना राम जोहती
    कटता क्यों बनवास नहीं
    मेहनत की सीता भी भूखी
    कटता क्यों उपवास नहीं
    ... ... ...
    गुमसुम गलियों में
    ममता की
    खुशबू तो बिखराने दो

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर नवगीत है ये राधेश्याम जी का। हार्दिक बधाई उन्हें इस नवगीत के लिए।

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  3. हार्दिक बधाई श्रेष्ठ नवगीत के लिए

    श्रेष्ठ नवगीत के लिए

    waah... waah...

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  4. डा० राधेश्याम बंधु सक्रिय नवगीतकार हैं परन्तु नवगीत की पाठशाला पर उनका यह पहला नवगीत है, स्वागत है बंधु जी का। बहुत सुन्दर नवगीत है बंधु जी का ....... बहुत बहुत वधाई डा० बंधु जी को।

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  5. गुमसुम गलियों में
    ममता की
    खुशबू तो बिखराने दो

    वाह...वाह...

    बहुत सुंदर नवगीत...बधाई आपको...

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  6. बहुत सुन्दर नवगीत लगा। इस नवगीत में आपने बहुत ही खूबसूरत तरीके से आज के संदर्भ की तुलना की है, उदाहरण भी अच्छे दिए है। बहुत बधाई।

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  7. उत्तम द्विवेदी23 अगस्त 2011 को 8:38 pm बजे

    एक अच्छे नवगीत के लिए बधाई!
    बहुत घुटन है
    बंद घरो में, खुली हवा तो आने दो
    संशय की खिड़कियाँ
    खोल दो, किरनों को मुस्काने दो
    --- सुन्दर मुखड़ा

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  8. ऊंचे- ऊँचे भवन उठ रहे
    पर आंगन का नाम नहीं,
    चमक - दमक आपा- धापी है
    पर जीवन का नाम नहीं

    लौट न जाये
    सूर्य द्वार से,
    नया सबेरा लाने दो Bahut acchii pantiyaan Nice
    Prabhudayal

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  9. हर माँ अपना राम जोहती
    कटता क्यों बनवास नहीं
    मेहनत की सीता भी भूखी
    कटता क्यों उपवास नहीं

    बाबा की सूनी
    आँखों में,
    चुभता तिमिर भगाने दो
    डा० राधेश्याम बंधुजी को इस प्रेरणापूर्ण नवगीत के लिए आभार

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