भरी भीड़ में एकाकी हम
बने हुए अपवाद
खोज रहे हैं दायें-बायें
रिश्तों की बुनियाद
बूढ़े अनुभव जंग लगे-से
काम नहीं आये
थके-थके से देखे हमने
जीवन के साये
संवादों में उगे अचानक
संशय औ॔ अवसाद
खोज रहे हैं दायें-बायें
रिश्तों की बुनियाद
जंगल भर में गहमागहमी
भाषा की हलचल
बंदर की मानिंद कर रहे
सब की सभी नकल
एक टिटहरी पढ़ती जाती
अधकचरा अनुवाद
खोज रहे हैं दायें-बायें
रिश्तों की बुनियाद
डा० अश्वघोष
(देहरादून)
बहुत सुंदर नवगीत है ये अश्वघोष जी का। बहुत बहुत बधाई उन्हें इस शानदार नवगीत के लिए।
जवाब देंहटाएंबूढ़े अनुभव जंग लगे-से
जवाब देंहटाएंकाम नहीं आये
थके-थके से देखे हमने
जीवन के साये
संवादों में उगे अचानक
संशय औ॔ अवसाद
शानदार प्रस्तुति
डॉ. अश्वघोष के इस गीत में महानगर में 'रिश्तों की बुनियाद' के ही बिला जाने की आज के संवेदनशील व्यक्ति की जो चिंता है, उसका आकलन बड़े ही सटीक रूप में हो पाया है| उस बुनियाद की खोज करना आज बेहद ज़रूरी हो गया है|
जवाब देंहटाएंभाई अश्वघोष जी को मेरा हार्दिक अभिनन्दन इस दो पदों के श्रेष्ठ गीत के लिए|
" जंगल भर में गहमागहमी
जवाब देंहटाएंभाषा की हलचल
बंदर की मानिंद कर रहे
सब की सभी नकल "
महानगरीय जीवन की बहुत यथार्थमयी अभिव्यक्ति अश्वघोष जी के इस नवगीत में हुई है। मौलिक चिंतन की उपेक्षा कर प्रतिस्पर्धात्मक नकल की बढ़ती अतिशय प्रवृत्ति पर नवगीत में सार्थक टिप्पणी की गई है।
अश्वघोष जी का "भरी भीड़ में" शीर्षक यह नवगीत वर्ष 2006 में उनके नवगीत संग्रह "गई सदी के स्पर्श" में प्रकाशित हो चुका है।
अश्वघोष जी को उनके बहुत सुन्दर नवगीत के लिये वधाई।
एक टिटहरी पढ़ती जाती
जवाब देंहटाएंअधकचरा अनुवाद
खोज रहे हैं दायें-बायें
रिश्तों की बुनियाद
.............टिटहरी का पढ़ना बहुत पसंद आया..
बहुत सुंदर...
आभार आपका...
too good verryyyyyyyy nice sir
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति बहुत सुंदर नवगीत है अश्वघोष जी को उनके बहुत सुन्दर नवगीत के लिये वधाई।
जवाब देंहटाएंथके-थके से देखे हमने
जवाब देंहटाएंजीवन के साये
संवादों में उगे अचानक
संशय औ॔ अवसाद
कटु यथार्थ... प्रभावी नवगीत. बधाई.