1 अक्तूबर 2011

५. पैसा रहा हाथ में तो फिर हर दिन उत्सव है

पलक झपकते ही सबके सब
मेरे काम किये
उसने सौ माँगे तो मैंनें
दो सौ उसे दिये|

देकर काम कराने की
ये रीत पुरानी है
सदियों से ही जन जन की
जानी पहचानी है
बड़े बुजुर्गों ने ये बातें
बारंबार कहीं
पैसे देकर काम कराना
अब तो कठिन नहीं
हम तो लेकर देकर ही
जीवन समृद्ध जिये|

घर घर में अब होड़ लगी है
दौड़ लगाने की
जैसे भी हो किसी तरह से
सब कुछ पाने की
इसी चाह ने रिश्तों मित्रों
से नाता तोड़ा
झूठ दिखावे से निर्मित
छल का मुखड़ा ओढ़ा
किसी तरह भी उल्लासित हो
आनंदित रहिये|

पैसा रहा हाथ में तो
फिर हर दिन उत्सव है
ऊँची पदवी कुर्सी है तो
रोज महोत्सव है
जिस दिन "डैडी" ढेर ढेर
रुपये घर लाते हैं
उस दिन बीवी बच्चों के
चेहरे खिल जाते हैं
जल जाते बिन दीवाली के
ढेरों ढेर दिये|

झोपड़ियों में जिस दिन भी
चूल्हा जल जाता है
मानो उस दिन बहुत बड़ा
उत्सव हो जाता है
देख तवे पर रोटी
बच्चे खुश हो जाते हैं
बड़े जोर से भारत माँ की
जय चिल्लाते हैं
आज आप भी भारत माता की
जय जय कहिये

-प्रभु दयाल
(छिंदवाड़ा)

7 टिप्‍पणियां:

  1. झोपड़ियों में जिस दिन भी
    चूल्हा जल जाता है
    मानो उस दिन बहुत बड़ा
    उत्सव हो जाता है

    सामाजिक विरोधाभासों को इंगित करती पंक्तियाँ मन छू गयीं.

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  2. शिल्प और कथ्य दोनों की दृष्टि से बहुत सुन्दर नवगीत है। आम आदमी के दैनिक जीवन की कई विद्रूपताओं को नवगीत में प्रस्तुत किया गया है, वधाई प्रभूदयाल जी को बहुत सुन्दर नवगीत के लिये।

    डा० व्योम

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  3. बहुत सुंदर नवगीत है ये प्रभुदयाल जी का, उन्हें बहुत बहुत बधाई इस सुंदर नवगीत के लिए

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. अपनी माटी से जुड़ा आम आदमी के मन की बात कहता सुंदर,सलोना गीत. बहुत-बहुत बधाई.

    मीना अग्रवाल

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  6. घर घर में अब होड़ लगी है
    दौड़ लगाने की
    जैसे भी हो किसी तरह से
    सब कुछ पाने की
    इसी चाह ने रिश्तों मित्रों
    से नाता तोड़ा
    झूठ दिखावे से निर्मित
    छल का मुखड़ा ओढ़ा
    किसी तरह भी उल्लासित हो
    आनंदित रहिये|
    सुन्दर नवगीत के लिये बहुत बहुत वधाई
    rachana

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  7. सलिलजी ,व्योमजी डा मीना अग्रवालजी रचनाजी एवं सज्जनजी टिप्पणी के लिये बहुत धन्यवाद
    प्रभुदयाल छिंदवाड़ा

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