ज्यों दिन
तिल-तिल बढ़ते जाते
दिनकर तेरी ज्योत बढ़े
जाओ रानी
गठरी बाँधो
शीत ऋतु को किया इशारा
नियम तुम्हारा नित्य पुरातन
सदियाँ बीतीं तू नहीं हारा।
साँझ ढले कहीं और चल दिये
आ जाते हो
भोर पड़े
हर कोने से
सजी पतंगें
मुक्त गगन में लहराईं
तिल गुड की सोंधी मिठास
रिश्तों में अपनापन लाई
युवा उमंगें बढ़ीं सौ गुनी
ज्यों ज्यों ऊपर
डोर चढ़े
मकर प्रवेश
तुम्हारा सूरज
भाग्य कर्म का है लेखा
जोड़ घटा कर शेष बचा जो
कहलाए जीवन रेखा
बढ़ता चल मन आरोही
पग नए शिखर पर
आज पड़े
कल्पना रामानी
मुंबई से
कत्थ्य, विषय व लय हर तरह से एक सफल व सुंदर नवगीत के लिए कल्पना रामानी जी को बहुत-बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंउत्तम जी,सुंदर टिप्पणी के लिए धन्यवाद।
हटाएंमकर प्रवेश
जवाब देंहटाएंतुम्हारा सूरज
भाग्य कर्म का है लेखा
जोड़ घटा कर शेष बचा जो
कहलाए जीवन रेखा
बढ़ता चल मन आरोही
पग नए शिखर पर
आज पड़े
सुंदर और सलोना नवगीत - बधाई
कान्त जी, बहुत बहुत धन्यवाद!
हटाएंसुंदर नवगीत के लिए कल्पना जी को बधाई
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी, बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंबधाई कल्पना जी. बहुत सुन्दर एक सांस में पढ़ लेने वाला नवगीत.
जवाब देंहटाएंपरमेश्वर जी,धन्यवाद आपका!
हटाएंबहुत भावपूर्ण रचना| कल्पना जी,बधाई
जवाब देंहटाएंमोहिनी जी आपका हार्दिक धन्यवाद।
हटाएंमकर प्रवेश तुम्हारा सूरज भाग्य कर्म का है लेखा
जवाब देंहटाएंजोड़ घटा कर शेष बचा जो कहलाए जीवन रेखा
बढ़ता चल मन आरोही पग नए शिखर पर आज पड़े
अति सुन्दर, अच्छे नवगीत के लिये कल्पना जी को बहुत बहुत बधाई।
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
विमल कुमार जी, धन्यवाद आपका ।
हटाएंमोहिनी जी, बहुत बहुत धन्यवाद!
हटाएंनवगीत की सीमाओं में सहेजा समेटा सुदार गीत. बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंडाक्टर जयजयराम आनंद
लास एंजीलिस अमेरिका
नवगीत की सीमाओं में सहेजा समेटा सुदार गीत. बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंडाक्टर जयजयराम आनंद
लास एंजीलिस अमेरिका
धन्यवाद जय जय राम जी!
हटाएंबधाई कल्पना जी।
जवाब देंहटाएंबधाई हो कल्पना जी।
जवाब देंहटाएंरामकिशोर जी, हार्दिक धन्यवाद!
हटाएंsunder shabd sanyojan, arti sunder bhav
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका शर्मा जी!
हटाएंज्यों दिन
जवाब देंहटाएंतिल-तिल बढ़ते जाते
दिनकर तेरी ज्योत बढ़े
इस सनातन कामना में ही धरती की जीवन्तता है. गीत दिल को छूता है. नवगीत में देशज शब्दों की उपस्थिति हो पाती तो मती का सौंधापन भी मिलता.