22 जनवरी 2012

८. दिनकर तेरी ज्योत बढ़े

ज्यों दिन
तिल-तिल बढ़ते जाते
दिनकर तेरी ज्योत बढ़े

जाओ रानी
गठरी बाँधो
शीत ऋतु को किया इशारा
नियम तुम्हारा नित्य पुरातन
सदियाँ बीतीं तू नहीं हारा।
साँझ ढले कहीं और चल दिये
आ जाते हो
भोर पड़े

हर कोने से
सजी पतंगें
मुक्त गगन में लहराईं
तिल गुड की सोंधी मिठास
रिश्तों में अपनापन लाई
युवा उमंगें बढ़ीं सौ गुनी
ज्यों ज्यों ऊपर
डोर चढ़े

मकर प्रवेश
तुम्हारा सूरज
भाग्य कर्म का है लेखा
जोड़ घटा कर शेष बचा जो
कहलाए जीवन रेखा
बढ़ता चल मन आरोही
पग नए शिखर पर
आज पड़े

कल्पना रामानी
मुंबई से

22 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तम द्विवेदी22 जनवरी 2012 को 11:55 am बजे

    कत्थ्य, विषय व लय हर तरह से एक सफल व सुंदर नवगीत के लिए कल्पना रामानी जी को बहुत-बहुत बधाई।

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  2. मकर प्रवेश
    तुम्हारा सूरज
    भाग्य कर्म का है लेखा
    जोड़ घटा कर शेष बचा जो
    कहलाए जीवन रेखा
    बढ़ता चल मन आरोही
    पग नए शिखर पर
    आज पड़े

    सुंदर और सलोना नवगीत - बधाई

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  3. सुंदर नवगीत के लिए कल्पना जी को बधाई

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  4. परमेश्वर फुँकवाल22 जनवरी 2012 को 8:08 pm बजे

    बधाई कल्पना जी. बहुत सुन्दर एक सांस में पढ़ लेने वाला नवगीत.

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  5. बहुत भावपूर्ण रचना| कल्पना जी,बधाई

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  6. विमल कुमार हेड़ा।23 जनवरी 2012 को 7:42 am बजे

    मकर प्रवेश तुम्हारा सूरज भाग्य कर्म का है लेखा
    जोड़ घटा कर शेष बचा जो कहलाए जीवन रेखा
    बढ़ता चल मन आरोही पग नए शिखर पर आज पड़े
    अति सुन्दर, अच्छे नवगीत के लिये कल्पना जी को बहुत बहुत बधाई।
    धन्यवाद।
    विमल कुमार हेड़ा।

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  7. नवगीत की सीमाओं में सहेजा समेटा सुदार गीत. बहुत बहुत बधाई.
    डाक्टर जयजयराम आनंद
    लास एंजीलिस अमेरिका

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  8. नवगीत की सीमाओं में सहेजा समेटा सुदार गीत. बहुत बहुत बधाई.
    डाक्टर जयजयराम आनंद
    लास एंजीलिस अमेरिका

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  9. ज्यों दिन
    तिल-तिल बढ़ते जाते
    दिनकर तेरी ज्योत बढ़े

    इस सनातन कामना में ही धरती की जीवन्तता है. गीत दिल को छूता है. नवगीत में देशज शब्दों की उपस्थिति हो पाती तो मती का सौंधापन भी मिलता.

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