रात अमा ने बाँधे घेरे
निशितारों ने डाले डेरे
उदयाचल के खोल झरोखे
सूरज तू तो जलते रहना
कलश ज्योत के भरते रहना
अम्बर की गलियों में कब से
राहू-केतु घूम रहे
अँधियारे की चादर ओढ़े
काले मेघा झूम रहे
किरणों की थामे कंदीलें
नभ गँगा में तरते रहना
ज्योतिर्मय तू चलते रहना
युगों- युगों के तापस तुम संग
ताप तपस्या मैं तप लूँगी
माघ-पोष की ठिठुरन बैरिन
आस तेरी में मैं सह लूँगी
जानूँ तुम फाल्गुन के आते
भेजोगे वासन्ती गहना
तू जाने, तुझसे क्या कहना
दूर क्षितिज पर रेखाओं ने
ओढ़ी है सतरंगी चूनर
उड़ी पतंगें मनुहारों की
शाख –शाख ने बाँधे झूमर
छू लेना पर्वत का मस्तक
धीर धरा का धरते रहना
रे सूरज तू चलते रहना !!!!!
शशि पाधा
यू.एस.ए. से
इस सुंदर नवगीत के लिए शशि पाधा जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंधर्मेन्द्र जी,
हटाएंगीत पसंद आया, धन्यवाद |
अति सुंदर शब्दों से सजा हुआ अति सुंदर गीत! बधाई शशि जी!
जवाब देंहटाएंकल्पना जी,
हटाएंआपने गीत को पढ़ा और सराहा, धन्यवाद |
शशि पाधा जी को सुंदर नवगीत के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंउत्तम जी,
हटाएंहार्दिक धन्यवाद स्वीकारें |
शशि पाधा
प्रिय शशि पाधा जी,
जवाब देंहटाएंएक श्रेष्ठ गीत के लिए मेरा हार्दिक अभिनन्दन एवं साधुवाद स्वीकारें| कुछ अछूते सन्दर्भ एवं बिम्ब इस गीत में प्रस्तुत हुए हैं, जो इसे नवगीत की भंगिमा देते हैं| कुछ पंक्तियाँ विशेष रुचीं, यथा -
अम्बर की गलियों में कब से
राहू-केतु घूम रहे
अँधियारे की चादर ओढ़े
काले मेघा झूम रहे
किरणों की थामे कंदीलें
नभ गँगा में तरते रहना
ज्योतिर्मय तू चलते रहना
आदरणीय कुमार रवीन्द्र जी,
हटाएंआपके द्वारा लिखे शब्द मुझे सदैव प्रेरणा देते रहेंगे | मैं गीत और नवगीत के बीच की क्षीण रेखा को समझने का प्रयत्न कर रही हूँ और अपने बिम्ब, उपमान लोक संस्कृति तथा आंचलिक परिवेश में ढूँढती रहती हूँ | नवगीत की पाठशाला से जुड़ कर ही नवगीत लिखने लगी , पहले गीत ही लिखती थी | प्रेरणा का संबल साथ रहे , इन्हीं शुभ कामनायों के साथ ,
शशि पाधा
बहुत सुंदर. बहुत.
जवाब देंहटाएंशारदा जी,
हटाएंआपाका हार्दिक धन्यवाद |
शशि पाधा
बहुत सुंदर नवगीत. बधाई.
जवाब देंहटाएंयुगों- युगों के तापस तुम संग
जवाब देंहटाएंताप तपस्या मैं तप लूँगी
माघ-पोष की ठिठुरन बैरिन
आस तेरी में मैं सह लूँगी
जानूँ तुम फाल्गुन के आते
भेजोगे वासन्ती गहना
तू जाने, तुझसे क्या कहना
शशि ने की रवि वंदना, मिला अमित आनंद.
वासंती गहना ल्पहन पहन, रचें नित्य नव छंद..
बहुत -बहुत धन्यवाद संजीव जी |
हटाएंसादर
अम्बर की गलियों में कब से, राहू-केतु घूम रहे
जवाब देंहटाएंअँधियारे की चादर ओढ़े, काले मेघा झूम रहे
किरणों की थामे कंदीलें,नभ गँगा में तरते रहना
ज्योतिर्मय तू चलते रहना
सुन्दर पंक्तियाँ शशि पाधा जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद
विमल कुमार हेडा
विमल कुमार जी ,
हटाएंहार्दिक धन्यवाद |
Accha navgeet .Badhai shashi padhaji.
जवाब देंहटाएंPrabhudayal
धन्यवाद प्रभुदयाल जी |
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