डाल डाल गमक उठे जैसे हरसिंगार
महका पलाश वन सुधि की बौछार
कुमकुम भर मांग में
रस मधुर छंद सी
मतवाली देह हुई
नेह के निबंध सी ,
साँस साँस समां गई फागुनी बयार
महका पलाश वन सुधि की बौछार
एक छुअन गंधमयी
भीगा अंग - अंग
पोर पोर पुलक भरे
अनछुई उमंग ,
छुईमुई प्रीतिपगी मधुमयी बयार
महका पलाश वन सुधि की बौछार
अस्फुट से शब्दों के
भाव है अनंत
हरियाला सावन है
बाबरा बसंत ,
शब्दातीत पुलकनों का चन्दनी खुमार
महका पलाश वन सुधि की बौछार
--डॉ. मधु प्रधान
(कानपुर)
महका पलाश वन सुधि की बौछार
कुमकुम भर मांग में
रस मधुर छंद सी
मतवाली देह हुई
नेह के निबंध सी ,
साँस साँस समां गई फागुनी बयार
महका पलाश वन सुधि की बौछार
एक छुअन गंधमयी
भीगा अंग - अंग
पोर पोर पुलक भरे
अनछुई उमंग ,
छुईमुई प्रीतिपगी मधुमयी बयार
महका पलाश वन सुधि की बौछार
अस्फुट से शब्दों के
भाव है अनंत
हरियाला सावन है
बाबरा बसंत ,
शब्दातीत पुलकनों का चन्दनी खुमार
महका पलाश वन सुधि की बौछार
--डॉ. मधु प्रधान
(कानपुर)
bahut hi sunder Rachna hai di......
जवाब देंहटाएंहरसिंगार से श्रृंगार तक इस गीत में माधुर्य ही माधुर्य है. सुन्दर प्रस्तुति. बधाई मधु जी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ,मधुर गीत .....बधाई मधु जी को .
हटाएंप्रशंसा के लिए धन्यवाद
हटाएंBAHUT SUNDAR...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंअस्फुट से शब्दों के
जवाब देंहटाएंभाव है अनंत
हरियाला सावन है
बाबरा बसंत ,
शब्दातीत पुलकनों का चन्दनी खुमार...हरसिंगार सा ही महकता गीत. हर बंद बहुत ही मोहक है डॉक्टर मधु जी.
बहुत बहुत शुक्रिया
हटाएंफूलों जैसा सुमधुर और प्यारा गीत। बधाई मधु जी।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट कल 22/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.com
चर्चा - 826:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंbahot madhur......
जवाब देंहटाएंक्या खुबसूरत नवगीत....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई.
अस्फुट से शब्दों के
जवाब देंहटाएंभाव है अनंत
हरियाला सावन है
बाबरा बसंत ,
शब्दातीत पुलकनों का चन्दनी खुमार....बहुत सुन्दर ,मधुर गीत
"मतवाली देह हुई
जवाब देंहटाएंनेह के निबंध सी"
बिल्कुल ही अलग और नई कल्पना है।
बधाई मधु जी को इस सुंदर रचना के लिए
डा. रमा द्विवेदी ,हैदराबाद
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत भावपूर्ण नवगीत ...मधु जी को बधाई व शुभकामनाएं
कुमकुम भर मांग में रस मधुर छंद सी
जवाब देंहटाएंमतवाली देह हुई नेह के निबंध सी ,
साँस साँस समां गई फागुनी बयार
महका पलाश वन सुधि की बौछार
पूरा गीत हरसिंगार की तरह महक रहा है, बहुत सुन्दर, अच्छे नवगीत के लिये डॉ. मधु प्रधान जी को बहुत बहुत बधाई
धन्यवाद।
विमल कुमार हेड़ा।
कुमकुम भर मांग में
जवाब देंहटाएंरस मधुर छंद सी
मतवाली देह हुई
नेह के निबंध सी ,
साँस साँस समां गई फागुनी बयार
महका पलाश वन सुधि की बौछार
भावपूर्ण नवगीत .
rachana
अस्फुट से शब्दों के
जवाब देंहटाएंभाव है अनंत
हरियाला सावन है
बाबरा बसंत ,
शब्दातीत पुलकनों का चन्दनी खुमार
महका पलाश वन सुधि की बौछार
मन को छूता नवगीत. बधाई.
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com