20 मार्च 2012

१. डाल डाल हरसिंगार

डाल डाल गमक उठे जैसे हरसिंगार
महका पलाश वन सुधि की बौछार

कुमकुम भर मांग में
रस मधुर छंद सी
मतवाली देह हुई
नेह के निबंध सी ,
साँस साँस समां गई फागुनी बयार
महका पलाश वन सुधि की बौछार

एक छुअन गंधमयी
भीगा अंग - अंग
पोर पोर पुलक भरे
अनछुई उमंग ,
छुईमुई प्रीतिपगी मधुमयी बयार
महका पलाश वन सुधि की बौछार

अस्फुट से शब्दों के
भाव है अनंत
हरियाला सावन है
बाबरा बसंत ,
शब्दातीत पुलकनों का चन्दनी खुमार
महका पलाश वन सुधि की बौछार

--डॉ. मधु प्रधान

(कानपुर)

19 टिप्‍पणियां:

  1. परमेश्वर फुँकवाल21 मार्च 2012 को 8:12 am बजे

    हरसिंगार से श्रृंगार तक इस गीत में माधुर्य ही माधुर्य है. सुन्दर प्रस्तुति. बधाई मधु जी.

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    1. बहुत सुन्दर ,मधुर गीत .....बधाई मधु जी को .

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    2. प्रशंसा के लिए धन्यवाद

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  2. अनिल वर्मा, लखनऊ21 मार्च 2012 को 9:29 am बजे

    अस्फुट से शब्दों के
    भाव है अनंत
    हरियाला सावन है
    बाबरा बसंत ,
    शब्दातीत पुलकनों का चन्दनी खुमार...हरसिंगार सा ही महकता गीत. हर बंद बहुत ही मोहक है डॉक्टर मधु जी.

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  3. फूलों जैसा सुमधुर और प्यारा गीत। बधाई मधु जी।

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  4. आपकी पोस्ट कल 22/3/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.com
    चर्चा - 826:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  5. क्या खुबसूरत नवगीत....
    सादर बधाई.

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  6. अस्फुट से शब्दों के
    भाव है अनंत
    हरियाला सावन है
    बाबरा बसंत ,
    शब्दातीत पुलकनों का चन्दनी खुमार....बहुत सुन्दर ,मधुर गीत

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  7. "मतवाली देह हुई
    नेह के निबंध सी"
    बिल्कुल ही अलग और नई कल्पना है।
    बधाई मधु जी को इस सुंदर रचना के लिए

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  8. डा. रमा द्विवेदी ,हैदराबाद


    बहुत-बहुत भावपूर्ण नवगीत ...मधु जी को बधाई व शुभकामनाएं

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  9. विमल कुमार हेड़ा।26 मार्च 2012 को 8:35 am बजे

    कुमकुम भर मांग में रस मधुर छंद सी
    मतवाली देह हुई नेह के निबंध सी ,
    साँस साँस समां गई फागुनी बयार
    महका पलाश वन सुधि की बौछार
    पूरा गीत हरसिंगार की तरह महक रहा है, बहुत सुन्दर, अच्छे नवगीत के लिये डॉ. मधु प्रधान जी को बहुत बहुत बधाई
    धन्यवाद।
    विमल कुमार हेड़ा।

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  10. कुमकुम भर मांग में
    रस मधुर छंद सी
    मतवाली देह हुई
    नेह के निबंध सी ,
    साँस साँस समां गई फागुनी बयार
    महका पलाश वन सुधि की बौछार
    भावपूर्ण नवगीत .
    rachana

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  11. अस्फुट से शब्दों के
    भाव है अनंत
    हरियाला सावन है
    बाबरा बसंत ,
    शब्दातीत पुलकनों का चन्दनी खुमार
    महका पलाश वन सुधि की बौछार
    मन को छूता नवगीत. बधाई.
    Acharya Sanjiv verma 'Salil'

    http://divyanarmada.blogspot.com

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