घट रही है
अब नदी की धार सी
संवेदनाएं
पेड़ कब से
तक रहे पंछी घरों को लौट आयें
और फिर अपनी उड़ानों की खबर
हमको सुनाएँ
अनकहे से
शब्द में फिर कर रही आगाह
क्या सारी दिशाएँ
हाट बस
आडम्बरों के दीखते जिस और जाएँ
रक्तरंजित हो चली है नेह की
सारी ऋचाएँ
रोक दो
जिस ओर से भी आ रही
जहरीली हवाएँ
-रोहित रुसिया
पेड़ कब से
जवाब देंहटाएंतक रहे पंछी घरों को लौट आयें
और फिर अपनी उड़ानों की खबर
हमको सुनाएँ....
.........बहुत ही अच्छा नवगीत ..कवि को बधाई ..!! सच ,समय कहाँ ले आया है हमें ..!!
पथ पर टकटकी लगाए अपनों की प्रतीक्षा में मौन आँखें हर दिशा में ढूँढ आतीं हैं ..दूर हुए अपनों को ....!!!
बहुत सुंदर नवगीत, बधाई रोहित जी को
जवाब देंहटाएंबहुत संक्षिप्त किन्तु बहुत प्रभावी नवगीत. बधाई रोहित जी को.
जवाब देंहटाएंसम्वेदनाओं पर केन्द्रित सुन्दर नवगीत रोहित रूसिया जी का.
जवाब देंहटाएंसम्वेदनाओं पर केन्द्रित सुन्दर नवगीत रोहित रूसिया जी का.
जवाब देंहटाएंसुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंअच्छा नवगीत है
जवाब देंहटाएंअच्छा नवगीत है बधाई आपको ..
जवाब देंहटाएंअच्छा नवगीत ,बधाई ।
जवाब देंहटाएंछूटते रिश्ते और रीती होती नेह की गागर की ओर इंगित करती एक श्रेष्ठ रचना | बधाई |
जवाब देंहटाएंहाट अब आडंबरों के दीखते, जिस ओर जाएँ ...सुंदर नवगीत...
जवाब देंहटाएंनवगीत आपसभी ने पसंद किया , बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं------------ रोहित रूसिया