14 सितंबर 2012

५. नदी की धार सी संवेदनाएँ

घट रही है
अब नदी की धार सी
संवेदनाएं

पेड़ कब से
तक रहे पंछी घरों को लौट आयें
और फिर अपनी उड़ानों की खबर
हमको सुनाएँ
अनकहे से
शब्द में फिर कर रही आगाह
क्या सारी दिशाएँ

हाट बस
आडम्बरों के दीखते जिस और जाएँ
रक्तरंजित हो चली है नेह की
सारी ऋचाएँ
रोक दो
जिस ओर से भी आ रही
जहरीली हवाएँ

-रोहित रुसिया

12 टिप्‍पणियां:

  1. पेड़ कब से
    तक रहे पंछी घरों को लौट आयें
    और फिर अपनी उड़ानों की खबर
    हमको सुनाएँ....
    .........बहुत ही अच्छा नवगीत ..कवि को बधाई ..!! सच ,समय कहाँ ले आया है हमें ..!!
    पथ पर टकटकी लगाए अपनों की प्रतीक्षा में मौन आँखें हर दिशा में ढूँढ आतीं हैं ..दूर हुए अपनों को ....!!!

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  2. परमेश्वर फुंकवाल15 सितंबर 2012 को 2:11 pm बजे

    बहुत संक्षिप्त किन्तु बहुत प्रभावी नवगीत. बधाई रोहित जी को.

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  3. सम्वेदनाओं पर केन्द्रित सुन्दर नवगीत रोहित रूसिया जी का.

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  4. सम्वेदनाओं पर केन्द्रित सुन्दर नवगीत रोहित रूसिया जी का.

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  5. सुन्दर नवगीत के लिए हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  6. छूटते रिश्ते और रीती होती नेह की गागर की ओर इंगित करती एक श्रेष्ठ रचना | बधाई |

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  7. हाट अब आडंबरों के दीखते, जिस ओर जाएँ ...सुंदर नवगीत...

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  8. नवगीत आपसभी ने पसंद किया , बहुत धन्यवाद.
    ------------ रोहित रूसिया

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