26 सितंबर 2012

१७. जिंदगी नचा रही


दौडती जा रही भागती जा रही
जिंदगी हाथ से छूटती जा रही


छूट गए खेत गाँव
टिके नहीं कहीं पाँव
ढूँढते ही रह गए
तोष में विलीन छाँव
हठी-नटी तृषा मृगी
कितना नचा रही


अनबुझी प्यास के
हाट का उधार है
सूद रोज बढ़ रहा
आर है न पार है
चैन की हवाओं को
भूलती जा रही


समय नहीं पोंछ ले
रुक के कोई आँख नम
हाथ थाम चल पड़े
रुक रहे जो साँस-दम
बाँट ले संवेदना जो,
हाथ छोड़ जा रही


ठहर जरा देख ले
चाँद डूबते हुए
और आसमान पर
सूर्य जूझते हुए
झील की तरंग में
चाँदनी नहा रही
तू क्यों ना देख पा रही ?

-शशि पाधा
यू.एस.ए

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर नवगीत है शशि पाधा जी का, उन्हें बहुत बहुत बधाई

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  2. सुंदर ...सकारात्मक भाव ॥बहुत अच्छी रचना ....!!
    शुभकामनायें ...

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    1. अनुपमा जी, आपको यह नवगीत अच्छा लगा | धन्यवाद

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  3. अनबुझी प्यास के
    हाट का उधार है
    सूद रोज बढ़ रहा
    आर है न पार है
    चैन की हवाओं को
    भूलती जा रही सुन्दर सार्थक पंक्तियाँ, बधाई शशि जी सुन्दर नवगीत के लिए

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    1. सुवर्णा जी , जीवन की भागदौड में कोई कर्म तो सार्थक हो , यही सोच कर लिखा था | आपको धन्यवाद |

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  4. ...झील की तरंग में
    चाँदनी नहा रही...

    नवगीत बहुत सुंदर.

    शुभकामनायें.

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    1. शारदा जी, धन्यवाद | आपको प्रकृति से विशेष लागाव है | मैं यह जानती हूँ |

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  5. विमल कुमार हेड़ा।27 सितंबर 2012 को 8:30 am बजे

    छूट गए खेत गाँव, टिके नहीं कहीं पाँव,
    ढूँढते ही रह गए, तोष में विलीन छाँव,
    बहुत सुन्दर भाव लिये एक अच्छी रचना के लिये शशि पाधा जी को बहुत बहुत बधाई
    विमल कुमार हेड़ा।

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    1. विमल कुमार जी,

      हार्दिक धन्यवाद |

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  6. समय नहीं पोंछ ले
    रुक के कोई आँख नम
    हाथ थाम चल पड़े
    रुक रहे जो साँस-दम
    बाँट ले संवेदना जो,
    हाथ छोड़ जा रही
    ..............बहुत सुंदर नवगीत .
    बहुत बधाई शशि दी

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    1. गीता जी, आपको मेरी रचना भायी | धन्यवाद |

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  7. परमेश्वर फुंकवाल27 सितंबर 2012 को 5:28 pm बजे

    "अनबुझी प्यास के
    हाट का उधार है
    सूद रोज बढ़ रहा
    आर है न पार है" बहुत सुन्दर चित्रण है जीवन की भागमभाग का. सुन्दर नवगीत. आ शशी पाधा जी को बहुत बहुत बधाई.

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    1. मुख्य भाव की पंक्तियाँ रेखांकित करने के लिए धन्यवाद आपका |

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  8. समय नहीं पोंछ ले
    रुक के कोई आँख नम
    हाथ थाम चल पड़े
    रुक रहे जो साँस-दम
    बाँट ले संवेदना जो,
    हाथ छोड़ जा रही
    बहुत सुंदर भाव पूर्ण नवगीत। बधाई शशि जी

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  9. विडंबना का क्या सुन्दर चित्रण है.

    दौडती जा रही भागती जा रही
    जिंदगी हाथ से छूटती जा रही.

    खोने की कसक और बढती त्रश्न्गी का जवाब नही.

    खुशनुमा पलों को संजोने की अभिलाषा:
    ठहर जरा देख ले
    चाँद डूबते हुए
    और आसमान पर
    सूर्य जूझते हुए
    झील की तरंग में
    चाँदनी नहा रही
    तू क्यों ना देख पा रही ?

    एक बढ़िया नवगीत आ० शशि पाधा जी,.बधाई.

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  10. अनिल वर्मा, लखनऊ.30 सितंबर 2012 को 8:46 pm बजे

    कमाल की रवानी है इस नवगीत में. सुन्दर शब्द संयोजन एवं भावाभिव्यक्ति. रससिक्त करती रचना के लिये बधाई शशि पाधा जी.

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  11. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण नवगीत के लिए बधाई ।

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  12. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण नवगीत के लिए बधाई ।

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