बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ घर हमने छोड़ दिया ।
रीति कौन बताये मुझको
संध्या गीत सुनाये मुझको
कौन पर्व है ,कौन तिथि पर
इतना याद दिलाये मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाई वे से जोड़ दिया
दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली भी कुछ बेरंगी थी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया
राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
'अन्तर्जाल 'ने तोड़ दिया
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ घर हमने छोड़ दिया ।
ज्योत्सना शर्मा
बिजनौर
क्यूँ घर हमने छोड़ दिया ।
रीति कौन बताये मुझको
संध्या गीत सुनाये मुझको
कौन पर्व है ,कौन तिथि पर
इतना याद दिलाये मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाई वे से जोड़ दिया
दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली भी कुछ बेरंगी थी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया
राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
'अन्तर्जाल 'ने तोड़ दिया
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ घर हमने छोड़ दिया ।
ज्योत्सना शर्मा
बिजनौर
बहुत सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति !
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंराजमहल हैं लकदक झूले
जवाब देंहटाएंतीज के मेले हम कब भूले
सावन राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
'अन्तर्जाल 'ने तोड़ दिया
बहुत सुन्दर गीत. आशावाद के साथ पूर्ण होता है. ज्योत्स्ना जी आपको बहुत बहुत बधाई सुन्दर नवगीत के लिए.
दीवाली पर शोर बहुत था
जवाब देंहटाएंदीप उजाला कम करते थे
होली भी कुछ बेरंगी थी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया
-- अति सुंदर नवगीत, मन को आह्लादित करने वाले इस नवगीत के लिए ज्योत्सना जी को बधाई।
जवाब देंहटाएं२२. बड़ी उदासी थी कल मन में
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ घर हमने छोड़ दिया ।
रीति कौन बताये मुझको
संध्या गीत सुनाये मुझको
कौन पर्व है ,कौन तिथि पर
इतना याद दिलाये मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाई वे से जोड़ दिया
दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली भी कुछ बेरंगी थी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया
राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
'अन्तर्जाल 'ने तोड़ दिया
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ घर हमने छोड़ दिया ।
बेहद सशक्त रचना एक दर्द एक तीस लिए शहर की और पलायन का ,विवश कूच का .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
मंगलवार, 2 अक्तूबर 2012
ये लगता है अनासक्त भाव की चाटुकारिता है .
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंसुंदर नवगीत के लियें बधाई आपको ..
बहुत सुन्दर भावपूर्ण नवगीत ।
जवाब देंहटाएंरीति कौन बताये मुझको
जवाब देंहटाएंसंध्या गीत सुनाये मुझको
कौन पर्व है ,कौन तिथि पर
इतना याद दिलाये मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाई वे से जोड़ दिया
सुन्दर भाव
rachana
राजमहल हैं लकदक झूले
जवाब देंहटाएंतीज के मेले हम कब भूले
सावन राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
'अन्तर्जाल 'ने तोड़ दिया
सुन्दर पंक्तियाँ | बधाई |
सुंदर रचना के लिए ज्योत्सना जी को बधाई
जवाब देंहटाएं..
जवाब देंहटाएंगाँव की छोटी पगडंडी को
हाई वे से जोड़ दिया
क्यों हमने घर छोड़ दिया ..
इन्हीं पन्क्तियों को माध्यम बनाकर तथा कथित भौतिक प्रगति को उपलब्धि समझने वाली मानसिकता को अच्छे प्रकार से आपने रेखान्कित किया है ज्योत्सना जी!
आपके गीत की कई पन्क्तियों ने आंखों को सजल कर दिया .. एक भाव प्रवण गीत की रचना के लिये बधाई
बहुत भावपूर्ण गीत ! मन को छू लेने वाला !!
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