1 नवंबर 2012

१३.झिलमिलाते दीप देखो

झिलमिलाते दीप देखो
लग रहे कितने सलोने

कार्तिक की प्रात भीगी
दूब जैसे ओस से
तैल मदिरा पी लहरते
हैं हुए मदहोश से

आज ये ही बन गए हैं
बाल टोली के खिलौने

दीप्ति रवि की हैं चुराए
दिये माटी-धूर के
देखते तूफान को भी
साहसी ये घूर के

पंक्ति-पंक्ति उजास बिखरी
दीखते नभ नखत बौने

रात है काली अमावस की
सुमेरु सी बनी
झोपड़ी के द्वार दीपक
लग रहे संजीवनी

प्रगति युग में भी ये थाती
आस्था की चले ढोने

-ओमप्रकाश तिवारी

6 टिप्‍पणियां:

  1. दीपों की बातें निराली ..
    बहुत सुंदर प्रसतुति

    जवाब देंहटाएं
  2. रात है काली अमावस की
    सुमेरु सी बनी
    झोँपड़ी के द्वार दीपक
    लग रहे संजीवनी ।

    सुन्दर भावपूर्ण नवगीत के लिए ओमप्रकाश जी को बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर नवगीत है, बधाई स्वीकारें ओमप्रकाश जी

    जवाब देंहटाएं
  4. दीप्ति रवि की हैं चुराए
    दिये माटी-धूर के
    देखते तूफान को भी
    साहसी ये घूर के

    बहुत अच्छा नवगीत है। बधाई

    जवाब देंहटाएं
  5. दीप्ति रवि की हैं चुराए
    दिये माटी-धूर के
    देखते तूफान को भी
    साहसी ये घूर के

    पंक्ति-पंक्ति उजास बिखरी
    दीखते नभ नखत बौने

    बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं

आपकी टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत है। कृपया देवनागरी लिपि का ही प्रयोग करें।