11 मार्च 2013

१. रंग लिये फागुन

आया फिर
आँगन में रंग लिए फागुन

टेसू हर डाल पर फगुआ सुनाये
पात-पात सुन-सुन के
झूम-झूम जाए

पंछी गुनगुनाने लगे
प्यार भरी धुन

राह तके बालम की रंग लिए गोरी
छोडूँ ना साजन को
खेलूँगी होरी

बजने बेचैन दिखी
पायल छुन-छुन

शिकवे सब, भूल चली मस्तों की टोली
हर दिल को रिझा रही
रंग भरी बोली

प्रीति में खो जाएँ,
आओ हम - तुम

- रोहित रूसिया ( छिन्दवाड़ा )

13 टिप्‍पणियां:

  1. राह तके बालम की रंग लिए गोरी
    छोडूँ ना साजन को
    खेलूँगी होरी

    बजने बेचैन दिखी
    पायल छुन-छुन .......

    बहुत सुन्दर गीत रोहित जी .....

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  2. राह तके बालम की रंग लिए गोरी
    छोडूँ ना साजन को
    खेलूँगी होरी

    बजने बेचैन दिखी
    पायल छुन-छुन ......
    खूबसूरत गीत ...............

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  3. रोहित जी यहाँ -बजने बेचैन दिखी-वाक्यांश को ठीक कीजिए। यहाँ अपेक्षित अर्थ स्पष्ट नही हो पा रहा है।बाकी गीत सुन्दर है मौलिक भी है।

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  4. गोवर्धन यादव12 मार्च 2013 को 3:12 pm बजे

    फ़ागुन पर लिखी कविता पढकर मन गदगद हो गया.

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  5. सुन्दर गीत के साथ होली का आगाज़. टेसू हर डाल पर फगुआ सुनाये
    पात-पात सुन-सुन के
    झूम-झूम जाए

    पंछी गुनगुनाने लगे
    प्यार भरी धुन.......
    सुन्दर पंक्तियाँ

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  6. सुन्दर नवगीत के लिए रोहित रुसिया जी को बधाई।

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  7. सुन्दर नवगीत आ0 रूसिया जी।

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  8. सुन्दर नवगीत आ0 रूसिया जी।

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  9. रंगों में भीगा हुआ सुंदर और प्यारा गीत....

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