सडकों पर
बाजार सजे हैं फागुन में
बहुत दूर से तार बजे हैं
फागुन में।
खेतों में सरसों ने पीला रंग भरा
बौर आम की टहनी-टहनी पर उतरा
नीम झूमने लगी मस्त हो
फागुन में।
पीपल महुआ सभी
नहाकर निकले हैं
बूढे बरगद ने भी कपडे बदले हैं
कोयल का संगीत चल रहा
फागुन में।
रूप रंग से धरती जहाँ नहाती है
महानगर मे याद गाँव की आती है
नया नहीं कुछ यहाँ
कहीं भी फागुन में।
-भारतेन्दु मिश्र
(नई दिल्ली)
बाजार सजे हैं फागुन में
बहुत दूर से तार बजे हैं
फागुन में।
खेतों में सरसों ने पीला रंग भरा
बौर आम की टहनी-टहनी पर उतरा
नीम झूमने लगी मस्त हो
फागुन में।
पीपल महुआ सभी
नहाकर निकले हैं
बूढे बरगद ने भी कपडे बदले हैं
कोयल का संगीत चल रहा
फागुन में।
रूप रंग से धरती जहाँ नहाती है
महानगर मे याद गाँव की आती है
नया नहीं कुछ यहाँ
कहीं भी फागुन में।
-भारतेन्दु मिश्र
(नई दिल्ली)
फागुन पर सुन्दर नवगीत,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर नवगीत है। नवगीत की परिभाषा लिखी जाय तो इस गीत को उदाहरण के तौर पर प्रस्तुत किया जा सकता है। भारतेन्दु जी को बहुत बहुत बधाई।
जवाब देंहटाएंभारतेन्दु भाई की यह रचना नवगीत की कहन को, निश्चित ही, एक नया आयाम देती है| 'रूप रंग से धरती जहाँ नहाती है
जवाब देंहटाएंमहानगर मे याद गाँव की आती है
नया नहीं कुछ यहाँ
कहीं भी फागुन में।'
होली-गीत और ये पंक्तियाँ - नवगीत के आज के समय के सरोकार-वैविध्य की बानगी देती| सब कुछ अद्भुत-अभिनंदनीय!
बहुत दूर से तार बजे हैं
जवाब देंहटाएंफागुन में।
रूप रंग से धरती जहाँ नहाती है
महानगर मे याद गाँव की आती है
बहुत ही सुन्दर. हार्दिक बधाई भारतेंदु जी.