जिस दिन पलाश
जंगल में दहके
तुम आ जाना!
नववर्ष हर्ष उत्कर्ष
बहारों ने नापे!
हलदी वाले हाथों ने
दरवाजे छापे!
जिस दिन मौसम की गायक
कुहु कुहु कुहुके
तुम आ जाना!
सिल पर पिसते रंगत लाते
गहरे होते!
इंद्रधनुष जैसे
सपनो में ठहरे होते
जिस दिन मुंडेर पर
कोरी चूनर बहके
तुम आ जाना!
झरझर झरते रंग
झोंके रस गंधो के
जिस दिन ऊँची मेडों पर
किंशुक लहके
तुम आ जाना!
-निर्मला जोशी
जंगल में दहके
तुम आ जाना!
नववर्ष हर्ष उत्कर्ष
बहारों ने नापे!
हलदी वाले हाथों ने
दरवाजे छापे!
जिस दिन मौसम की गायक
कुहु कुहु कुहुके
तुम आ जाना!
सिल पर पिसते रंगत लाते
गहरे होते!
इंद्रधनुष जैसे
सपनो में ठहरे होते
जिस दिन मुंडेर पर
कोरी चूनर बहके
तुम आ जाना!
झरझर झरते रंग
झोंके रस गंधो के
जिस दिन ऊँची मेडों पर
किंशुक लहके
तुम आ जाना!
-निर्मला जोशी
निर्मला जोशी जी के नवगीत '-जिस दिन पलाश जंगल में दहके'की इन पंक्तियों ने विशेष् रूप से प्रभावित किया-
जवाब देंहटाएंसिल पर पिसते रंगत लाते
गहरे होते!
इंद्रधनुष जैसे
सपनो में ठहरे होते
अन्तिम पंक्तियों में -किंशुक लहके में लहकना क्रिया का विशिष्ट प्रयोग नवगीत को और गहन बनाता है ।
नवगीत अच्छा है,
जवाब देंहटाएंपर किसी प्रिय के आने के लिए
इतनी शर्तें रख देना अच्छा नहीं लगा!
निर्मला जी का हर नवगीत सुंदर होता है। यह नवगीत भी बहुत सुंदर है। हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंनववर्ष हर्ष उत्कर्ष
जवाब देंहटाएंबहारों ने नापे!
हलदी वाले हाथों ने
दरवाजे छापे!
जिस दिन मौसम की गायक
कुहु कुहु कुहुके
तुम आ जाना!
बहुत सुंदर
rachana