11 जून 2011

९. जिस दिन पलाश जंगल में दहके

जिस दिन पलाश
जंगल में दहके
तुम आ जाना!

नववर्ष हर्ष उत्कर्ष
बहारों ने नापे!
हलदी वाले हाथों ने
दरवाजे छापे!

जिस दिन मौसम की गायक
कुहु कुहु कुहुके
तुम आ जाना!

सिल पर पिसते रंगत लाते
गहरे होते!
इंद्रधनुष जैसे
सपनो में ठहरे होते

जिस दिन मुंडेर पर
कोरी चूनर बहके
तुम आ जाना!

झरझर झरते रंग
झोंके रस गंधो के
जिस दिन ऊँची मेडों पर
किंशुक लहके
तुम आ जाना!

-निर्मला जोशी

4 टिप्‍पणियां:

  1. निर्मला जोशी जी के नवगीत '-जिस दिन पलाश जंगल में दहके'की इन पंक्तियों ने विशेष् रूप से प्रभावित किया-
    सिल पर पिसते रंगत लाते
    गहरे होते!
    इंद्रधनुष जैसे
    सपनो में ठहरे होते
    अन्तिम पंक्तियों में -किंशुक लहके में लहकना क्रिया का विशिष्ट प्रयोग नवगीत को और गहन बनाता है ।

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  2. नवगीत अच्छा है,
    पर किसी प्रिय के आने के लिए
    इतनी शर्तें रख देना अच्छा नहीं लगा!

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  3. निर्मला जी का हर नवगीत सुंदर होता है। यह नवगीत भी बहुत सुंदर है। हार्दिक बधाई।

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  4. नववर्ष हर्ष उत्कर्ष
    बहारों ने नापे!
    हलदी वाले हाथों ने
    दरवाजे छापे!

    जिस दिन मौसम की गायक
    कुहु कुहु कुहुके
    तुम आ जाना!
    बहुत सुंदर
    rachana

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